दुर्गा पूजा की महिमा
शरद ऋतु की ठंडी हवाओं के बीच, जब आसमान नीला हो जाता है और पेड़ों पर हरियाली छा जाती है, तो पश्चिम बंगाल और भारत के अन्य हिस्सों में दुर्गा पूजा का पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। यह महज एक त्यौहार नहीं, बल्कि आस्था और उत्साह का संगम होता है। देवी दुर्गा का आगमन, उनकी पूजा और फिर विसर्जन - ये सभी क्षण जीवन के अनमोल अनुभवों में गिने जाते हैं।
कोलकाता में दुर्गा पूजा की बात ही निराली होती है। जब दुर्गा माँ की प्रतिमा को कुम्हारों द्वारा गढ़ा जाता है, तो पूरा माहौल जीवंत हो उठता है। मिट्टी से बनी यह प्रतिमा जैसे-जैसे आकार लेती है, लोगों के दिलों में भक्ति और श्रद्धा का संचार होता है। चारों ओर पंडाल सजाए जाते हैं, जिनकी भव्यता और कला अद्वितीय होती है। पंडालों की रोशनी और सजावट से रातें भी दिन जैसी लगने लगती हैं।
दुर्गा पूजा के पाँच दिनों में सबसे महत्वपूर्ण दिन होते हैं सप्तमी, अष्टमी और नवमी। इन दिनों में लोग पारंपरिक वेशभूषा में सजे-धजे होते हैं, और सुबह से लेकर रात तक पूजा, भोग और अर्चना का सिलसिला चलता रहता है। महिलाएं पारंपरिक लाल-श्वेत साड़ी पहनती हैं, और पुरुष धोती-कुर्ता में सजते हैं। चारों ओर ढाक की ध्वनि और शंख की आवाज से वातावरण गूंजता रहता है।
सप्तमी के दिन माँ दुर्गा का विधिवत आह्वान किया जाता है। पंडालों में देवी के चरणों में फूल चढ़ाए जाते हैं, और श्रद्धालु पूरी श्रद्धा से देवी को प्रणाम करते हैं। अष्टमी का दिन विशेष होता है क्योंकि इस दिन महाआरती का आयोजन किया जाता है, जिसमें सैकड़ों लोग एकत्रित होते हैं। देवी के समक्ष नृत्य, गीत और धूप-दीप की ध्वनि वातावरण को और पवित्र बना देती है।
नवमी का दिन शक्ति का प्रतीक होता है। इस दिन कुमारी पूजन होता है, जिसमें कन्याओं को देवी का स्वरूप मानकर उनकी पूजा की जाती है। इसके बाद विजयादशमी आती है, जब माँ दुर्गा का विसर्जन होता है। एक तरफ लोग माँ दुर्गा के लौटने की खुशी मनाते हैं, तो दूसरी तरफ उनके जाने का दुख भी होता है। विसर्जन के समय "अश्रुपूर्ण विदाई" का दृश्य बहुत ही मार्मिक होता है।
दुर्गा पूजा केवल धार्मिक अनुष्ठान नहीं है, बल्कि यह सामाजिक और सांस्कृतिक उत्सव भी है। इस त्यौहार के दौरान समाज के विभिन्न वर्ग के लोग एक साथ आते हैं, और अपनी-अपनी सांस्कृतिक धरोहर को साझा करते हैं। यह पर्व प्रेम, भाईचारे और एकता का प्रतीक है।
इस प्रकार दुर्गा पूजा हर साल हमें यह संदेश देती है कि बुराई पर अच्छाई की जीत होती है, और हमें अपने जीवन में सकारात्मकता और सृजनशीलता को स्थान देना चाहिए।
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