"कब ?"
यह कहानी एक छोटे गाँव की है, जहाँ सभी लोग एक ट्रेन का इंतजार कर रहे थे। आसमान में हल्का सा नारंगी और बैंगनी रंग फैल चुका था, जो इस बात का संकेत था कि शाम होने वाली है। गाँव का छोटा सा रेलवे स्टेशन, जहाँ आम तौर पर भीड़ नहीं होती, आज कुछ ज्यादा ही लोगों से भरा हुआ था।सबकी निगाहें दूर पटरी की ओर थीं, जहाँ से ट्रेन आने वाली थी। कुछ लोग अपने घड़ियों की ओर बार-बार देख रहे थे, जबकि कुछ लोग बैठकर अपने ही ख्यालों में खोए हुए थे। यह दृश्य थोड़ा असामान्य था, क्योंकि गाँव के लोग ऐसे शांत वातावरण में इतने बेचैन नहीं होते थे।
"कब आएगी ट्रेन?" एक बूढ़े आदमी ने धीमी आवाज में पूछा।
"शायद थोड़ी देर और," एक युवा ने उत्तर दिया। "लेकिन अब तक ट्रेन को आ जाना चाहिए था।"
इस इंतजार के पीछे एक खास वजह थी। गाँव के कुछ लोगों ने सुना था कि आने वाली ट्रेन में शहर से एक विशेष अधिकारी आने वाला है, जो गाँव की कई समस्याओं का हल निकाल सकता है। कई गाँवों में ऐसे अधिकारियों के आने से बदलाव हुए थे, और लोग उम्मीद कर रहे थे कि उनके गाँव में भी कुछ ऐसा ही होगा।
गाँव के लोग कभी-कभी ऐसे बड़े बदलावों के सपने देखते थे, लेकिन हर बार उनकी उम्मीदें टूट जाती थीं। "कब तक?" यह सवाल अक्सर उनके मन में उठता था, लेकिन उनके पास इसका कोई स्पष्ट उत्तर नहीं था।
स्टेशन मास्टर ने स्टेशन के बाहर खड़े लोगों की भीड़ की ओर देखा और कहा, "अब ट्रेन आने में ज्यादा देर नहीं है।"
जैसे-जैसे धुंधली रोशनी और गाढ़ी होती गई, ट्रेन की आवाज दूर से सुनाई देने लगी। धुएं के बादल धीरे-धीरे नजदीक आ रहे थे। लोगों की धड़कनें तेज हो गईं।
लेकिन जब ट्रेन स्टेशन पर रुकी, तो कोई अधिकारी नहीं उतरा। स्टेशन पर सवार यात्री सिर्फ शहर के आम लोग थे।
गाँव वालों के चेहरे पर निराशा साफ झलक रही थी। "कब?" यह सवाल फिर से उभर आया। कब वह दिन आएगा, जब गाँव की हालत बदलेगी, जब उनकी उम्मीदें पूरी होंगी?
यह सवाल अनुत्तरित ही रह गया, और लोग धीरे-धीरे स्टेशन छोड़कर वापस अपने घरों की ओर लौटने लगे।By: Akhilesh kumar