भारत की एक सोच
भारत के एक छोटे से गांव में रामू नाम का किसान रहता था। उसका जीवन साधारण और संघर्षपूर्ण था, लेकिन उसे अपनी ज़मीन से अत्यधिक प्रेम था। वह रोज़ सूरज उगने से पहले ही अपने खेतों में काम करने चला जाता और दिनभर मेहनत करता। रामू का सपना था कि उसका खेत इतना उपजाऊ बने कि पूरे गांव के लोग उसमें उगे अनाज से पेट भर सकें।
गांव के केंद्र में एक पुराना बरगद का पेड़ था। उस पेड़ के नीचे ग्रामवासी बैठकर अपने जीवन की छोटी-बड़ी समस्याओं पर चर्चा करते। यह पेड़ केवल एक छांव नहीं था, बल्कि गांव के दिल की धड़कन था, जहां लोग एक-दूसरे के साथ अपने सुख-दुख बांटते थे। एक दिन, गांव के मुखिया ने तय किया कि वे एक नई सोच को अपनाएंगे—गांव के विकास के लिए सामूहिक प्रयास किया जाएगा।
गांव में हर किसी को अपनी जिम्मेदारी निभानी थी। रामू को खेती में सुधार की जिम्मेदारी सौंपी गई, और वह खुश था कि उसकी मेहनत गांव के काम आएगी। महिलाएं सिलाई-कढ़ाई का काम करने लगीं, युवा शिक्षा में रुचि लेने लगे, और बुजुर्ग गांव की सामाजिक संरचना को सुदृढ़ करने के उपाय सोचने लगे।
रामू की सोच थी कि अगर हर कोई अपनी भूमिका को ईमानदारी से निभाए, तो गांव में कभी अभाव नहीं होगा। धीरे-धीरे, गांव में सकारात्मक बदलाव आने लगे। खेतों में फसलें लहलहाने लगीं, बच्चों की पढ़ाई में रुचि बढ़ने लगी और गांव में आपसी सहयोग और भाईचारा पहले से अधिक मजबूत हो गया।
रामू की सोच ने पूरे गांव को एक नई दिशा दी। अब गांव में कोई भूखा नहीं था, कोई निराश नहीं था। हर व्यक्ति को अपने काम पर गर्व था और सामूहिकता की भावना प्रबल हो गई थी।
यह कहानी उस सोच की है जो सिर्फ एक गांव नहीं, बल्कि पूरे देश को प्रेरणा दे सकती है। By: Akhilesh Kumar