"क्यों?"
यह कहानी एक छोटे से गाँव में हो रही पंचायत की है। गाँव के बड़के पेड़ के नीचे एक बैठक चल रही थी। गाँव के बुजुर्ग, अपने साधारण कपड़ों में, एक अर्धवृत्त में बैठे थे, और उनके सामने गाँव का एक व्यक्ति खड़ा होकर बात कर रहा था।
"क्यों?" यह प्रश्न उसने बुजुर्गों के सामने रखा। उसकी आवाज़ में आत्मविश्वास था लेकिन साथ ही एक संजीदगी भी। सवाल सुनकर सभी के चेहरे गंभीर हो गए। गाँव के मुखिया ने हल्की आवाज़ में पूछा, "क्यों क्या? स्पष्ट करोगे?"
उस व्यक्ति ने ठंडी सांस ली और फिर बोला, "हम सब यहां बैठकर हमेशा पुराने रिवाजों को मानते हैं। लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि ये रिवाज क्यों बनाए गए थे? क्या अब भी उनकी प्रासंगिकता है?"
बुजुर्गों में से एक, जो अपने अनुभव के लिए जाना जाता था, ने उत्तर दिया, "बेटा, ये रिवाज हमारे पूर्वजों ने बनाए थे। इनका पालन करना हमारी जिम्मेदारी है। ये हमारे समाज को बांधे रखते हैं।"
लेकिन उस व्यक्ति का सवाल फिर भी वही था, "क्यों?" उसने कहा, "बेशक, हमारे पूर्वजों ने ये रिवाज बनाए थे, लेकिन समय के साथ बदलाव भी आवश्यक होता है। जैसे हमारी खेती के तरीके बदल रहे हैं, वैसे ही समाज में भी बदलाव होने चाहिए।"
गाँव के कई लोग उसकी बात से सहमत हो रहे थे, लेकिन कुछ बुजुर्ग अभी भी उसकी बात को मानने को तैयार नहीं थे। "परंपराएं ही हमारी पहचान हैं," एक और बुजुर्ग बोले, "अगर हम उन्हें छोड़ देंगे, तो हमारा समाज बिखर जाएगा।"
"पर कब तक?" उस व्यक्ति ने शांतिपूर्वक उत्तर दिया। "क्या हम कभी भी नई सोच को अपनाएंगे? अगर हम हर सवाल का जवाब सिर्फ 'परंपरा' कहकर देंगे, तो हम विकास कैसे करेंगे?"
मुखिया ने गहरी सांस ली और कहा, "तुम्हारी बात में कुछ सच्चाई है। लेकिन बदलाव अचानक नहीं होता। हमें परंपराओं का सम्मान करते हुए नई सोच को जगह देनी होगी।"
बैठक का अंत एक नए विचार के साथ हुआ, जिसमें सभी ने इस बात पर सहमति जताई कि परिवर्तन आवश्यक है, लेकिन उसे समझदारी और धैर्य के साथ लागू किया जाना चाहिए। By:Akhilesh Kumar