नवरात्रि महा नवमी पर कहानी
महा नवमी का दिन, पूरे गांव में उल्लास और आस्था की लहरें फैला रहा था। नवरात्रि का यह अंतिम दिन विशेष रूप से मां दुर्गा की पूजा के लिए महत्वपूर्ण माना जाता है। गांव के हर घर में सुबह से ही तैयारियाँ चल रही थीं। महिलाएं पारंपरिक परिधानों में सजी-धजी, हाथों में पूजा की थालियां लेकर मंदिर की ओर बढ़ रही थीं।
मंदिर में चारों ओर दीप जलाए गए थे, जिससे पूरा वातावरण दिव्य और आध्यात्मिक हो उठा था। मंदिर के सामने बड़े पंडाल में मां दुर्गा की प्रतिमा को बड़े ही सुंदर तरीके से सजाया गया था। प्रतिमा के चारों ओर फूलों की मालाएं और फल-सब्जियों के चढ़ावे थे। पंडाल के मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई गई थी, जिसे गांव की युवतियों ने पूरी रात जागकर बनाया था।
गांव के बुजुर्ग पंडाल के कोने में बैठे, नवमी की पूजा की महत्ता पर चर्चा कर रहे थे। "महा नवमी का दिन मां दुर्गा के नौवें स्वरूप, सिद्धिदात्री की पूजा का होता है," उनमें से एक ने बताया। "ऐसा माना जाता है कि इस दिन मां दुर्गा अपनी सभी भक्तों की इच्छाएं पूरी करती हैं और उन्हें शक्ति और आशीर्वाद प्रदान करती हैं।"
पूजा का समय करीब आ चुका था। पंडित जी ने मंत्रोच्चारण के साथ पूजा आरंभ की। पूरे पंडाल में घंटे और शंख की ध्वनि गूंज उठी। हर कोई भक्ति और आस्था में डूबा हुआ था। महिलाएं मां दुर्गा को फूलों की अर्पण कर रही थीं और पुरुष हाथ जोड़कर मौन प्रार्थना कर रहे थे।
पूजा के बाद प्रसाद वितरण हुआ। बच्चों से लेकर बूढ़े तक, सबने कतार में खड़े होकर प्रसाद ग्रहण किया। इस दिन विशेष रूप से कन्याओं की पूजा का आयोजन भी किया गया था। गांव की छोटी बच्चियों को देवी का रूप मानकर भोजन कराया गया और उनके पैर धोकर उन्हें उपहार दिए गए।
शाम होते-होते मंदिर के चारों ओर दीप जलाए गए और पूरे वातावरण में भक्ति का संगीत गूंजने लगा। गांव के लोग एक साथ भजन-कीर्तन में लीन हो गए। मां दुर्गा की आरती के बाद, सभी ने मिलकर मां को विदा किया, यह जानकर कि अगले वर्ष फिर मां दुर्गा आएंगी और उन्हें अपने आशीर्वाद से पूरित करेंगी।
महा नवमी के इस दिन ने गांव के हर व्यक्ति को आपस में जोड़ा और उनमें एक नई ऊर्जा का संचार किया। यह त्योहार केवल पूजा-अर्चना का नहीं, बल्कि समाज में एकता, प्रेम और सौहार्द
का प्रतीक था। By: Akhilesh kumar