दुर्गा पूजा: एक सांस्कृतिक पर्व
दुर्गा पूजा भारत के सबसे बड़े और भव्य त्योहारों में से एक है, जो विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और बिहार में बड़ी धूमधाम से मनाया जाता है। इस पर्व का उद्देश्य मां दुर्गा की आराधना और उनकी शक्ति का सम्मान करना है। यह त्योहार अच्छाई की बुराई पर जीत का प्रतीक है, जब मां दुर्गा ने महिषासुर नामक राक्षस का वध किया था।
यह पूजा शरद ऋतु के दौरान मनाई जाती है, जब चारों ओर का वातावरण ठंडक से भर जाता है और लोगों के दिलों में उल्लास उमड़ पड़ता है। हर साल देवी दुर्गा की मूर्तियों को बड़े-बड़े पंडालों में स्थापित किया जाता है। ये पंडाल बड़े ही भव्य और कलात्मक होते हैं, जिनमें देवी की प्रतिमा को अत्यंत सुंदरता से सजाया जाता है। देवी के दस हाथों में विभिन्न प्रकार के अस्त्र-शस्त्र होते हैं और उनके चेहरे पर एक अद्भुत तेज दिखता है, जो हर भक्त को उनके समक्ष नतमस्तक होने को मजबूर कर देता है।
दुर्गा पूजा के समय लोग नए कपड़े पहनते हैं और पूरे उत्साह के साथ पंडालों में देवी के दर्शन करने जाते हैं। महिलाएं पारंपरिक साड़ियों में सजी होती हैं और सिंदूर खेला (सिंदूर से खेलने की रस्म) का आयोजन करती हैं। पूजा के दौरान विभिन्न सांस्कृतिक कार्यक्रम भी होते हैं, जैसे नृत्य, संगीत और नाटक। बच्चों के लिए यह एक आनंदमयी अवसर होता है, जहां वे अपने दोस्तों के साथ खेलते हैं और मिठाइयों का आनंद लेते हैं।
पूजा की विशेषता अष्टमी और नवमी के दिन की आरती होती है। इन दिनों में हजारों लोग देवी के समक्ष एकत्र होते हैं और आरती में भाग लेते हैं। ढाक की धुन, शंख की ध्वनि, और मंत्रोच्चार पूरे वातावरण को आध्यात्मिकता से भर देते हैं। लोग देवी के सामने दीप जलाते हैं और उनसे अपने जीवन में सुख-समृद्धि की कामना करते हैं।
पूरे शहर में एक मेला जैसा माहौल होता है। खाने-पीने के स्टॉल्स, हस्तशिल्प की दुकानों, और मनोरंजन के विभिन्न साधनों से पंडालों के आसपास का क्षेत्र जीवंत हो उठता है। खासकर, रोशनी की सजावट शहर को एक अनोखी सुंदरता प्रदान करती है।
दशमी के दिन देवी की मूर्ति का विसर्जन होता है। लोग ढोल-नगाड़ों के साथ नाचते-गाते हुए देवी को विदाई देते हैं। इस दिन की सबसे खास बात यह है कि लोग अपने गिले-शिकवे भूलकर एक-दूसरे को गले लगाते हैं और विजयादशमी की शुभकामनाएं देते हैं।
दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक महत्त्व रखती है, बल्कि यह समाज को एकजुट करने का भी पर्व है।By: Akhilesh kumar