समझौते की ज़िन्दगी
किसी छोटे से गाँव में रमेश नाम का एक व्यक्ति रहता था। वह साधारण जीवन जीने वाला किसान था। उसकी ज़िन्दगी में हर दिन का एक ही ढर्रा था - सुबह खेतों में काम करना, दिन में अपनी पत्नी सीमा और बच्चों के साथ थोड़ा वक्त बिताना, और शाम को थककर सो जाना। उसके पास ज्यादा पैसा नहीं था, परंतु उसकी ज़िन्दगी में शांति थी।
लेकिन एक दिन गाँव में अचानक बड़ा बदलाव आया। गाँव के पास के जंगल को काटकर एक बड़ा उद्योग बनाने की योजना बनाई गई। गाँव के लोग दो हिस्सों में बंट गए - कुछ लोग इस बदलाव के खिलाफ थे, जबकि कुछ इसे गाँव के विकास के रूप में देख रहे थे। रमेश का मन भी विभाजित था। उसे पता था कि अगर उद्योग बना, तो उसे अपने खेतों की ज़मीन छोड़नी पड़ेगी। लेकिन वह यह भी समझता था कि उसके बच्चों को बेहतर भविष्य मिल सकता है।
रमेश के घर में भी हर दिन इस बात पर चर्चा होती थी। उसकी पत्नी सीमा पूरी तरह से इस बदलाव के खिलाफ थी। उसका मानना था कि जमीन ही उनकी असली संपत्ति है, जिसे खोने का मतलब है, अपनी जड़ों को खो देना। दूसरी ओर, रमेश का बड़ा बेटा विकास के पक्ष में था। वह चाहता था कि उसके पिता इस समझौते को स्वीकार करें ताकि वह पढ़ाई कर सके और एक बड़ी कंपनी में नौकरी कर सके।
रमेश हर रोज इस संघर्ष से जूझता रहा। एक ओर उसकी वर्षों की मेहनत, दूसरी ओर परिवार की उम्मीदें। आखिरकार, उसने समझौता करने का फैसला किया। उसने अपनी ज़मीन बेच दी और अपनी फैमिली के साथ शहर में जाकर बसने का निर्णय लिया।
शहर में आने के बाद, शुरुआती दिन कठिन थे। परंतु धीरे-धीरे परिवार को नई जिंदगी में ढलना पड़ा। उसके बेटे ने इंजीनियरिंग की पढ़ाई शुरू कर दी और उसकी पत्नी ने भी छोटे-मोटे कामों से परिवार को संभालने में मदद की। परंतु रमेश का मन गाँव की उन यादों में खोया रहता। उसने जिंदगी में समझौता तो कर लिया था, लेकिन उसका दिल आज भी उन खेतों में, उस शांति में और उस पुराने जीवन में बसा हुआ था।
समझौते की ज़िन्दगी में अक्सर हम वह खो देते हैं, जिसे हम सबसे अधिक प्यार करते हैं, लेकिन कभी-कभी यह समझौता हमारे प्रियजनों के लिए एक बेहतर भविष्य का रास्ता भी खोलता है।
समाप्ति By: Akhilesh kumar