सादगी भरी ज़िन्दगी
गाँव के एक छोटे से कोने में रामू किसान अपने परिवार के साथ रहता था। उसकी ज़िन्दगी बहुत साधारण थी, पर उसमें सुकून और संतोष भरा था। सुबह-सवेरे सूरज की पहली किरण के साथ रामू उठता, खेतों की ओर चल पड़ता। उसकी पत्नी कमला चूल्हे पर ताज़ा रोटी बनाती और उसके बच्चे खुले मैदान में दौड़ते-भागते, हँसी-खुशी में मग्न रहते।
गाँव का जीवन भी वैसा ही सादा और शांत था। लोग सुबह जल्दी उठते, अपने-अपने कामों में जुट जाते। खेतों में हल चलाने की आवाज़ें, बैलों की घंटियों की ध्वनि और पक्षियों का चहचहाना, ये सब मिलकर एक अनोखी ध्वनि तैयार करते थे। यह आवाज़ें शांति का अनुभव करातीं, मानो पूरी दुनिया यहाँ ठहरी हुई हो, और सिर्फ प्रकृति की लय चल रही हो।
रामू का मानना था कि असली ख़ुशी किसी बड़ी दौलत या शहर की चकाचौंध में नहीं, बल्कि साधारण जीवन में छिपी होती है। उसे अपने खेत, अपने परिवार, और अपनी मेहनत से संतोष था। वह जब भी अपने खेतों में हल चलाता, उसके चेहरे पर एक अजीब सी शांति छा जाती। उसे लगता, जैसे वह धरती से जुड़ा हुआ है, और यह धरती उसकी ज़िन्दगी की सच्चाई है।
गाँव के बच्चों की शरारतें, बड़ों की हंसी-ठिठोली और शाम को घरों के बाहर बैठकर बातें करना - यही सब वहाँ की सादगी को दर्शाता था। लोग एक-दूसरे का ख्याल रखते, दुख-सुख में साथ होते। वहाँ न कोई भागदौड़ थी, न तनाव।
रात को, जब आसमान में तारे टिमटिमाते, रामू अपने घर की छत पर लेटा रहता। ठंडी हवा चलती, और उसे लगता कि उसकी ज़िन्दगी कितनी ख़ूबसूरत है। उसने कभी बड़े सपने नहीं देखे थे, बस चाहता था कि उसका परिवार खुश और स्वस्थ रहे।
इस सादगी भरी ज़िन्दगी में वह अपने परिवार के साथ हर दिन हंसता-खेलता, मेहनत करता और चैन की नींद सोता। उसकी ज़िन्दगी का यह सुकून और शांति शायद ही किसी बड़े शहर में मिल सके। By: Akhilesh kumar