सच्ची बात कठोर होती है
गांव के एक कोने में एक छोटा-सा घर था, जहाँ रामू नाम का एक साधारण किसान अपने परिवार के साथ रहता था। रामू मेहनती था, पर उसकी ईमानदारी और सच्चाई के कारण लोग अक्सर उससे दूरी बना लेते थे। उसके दोस्त भी उसकी सच्चाई को कठोर मानते थे, क्योंकि रामू हमेशा सच्चाई ही बोलता था, चाहे वह कड़वी ही क्यों न हो।
एक दिन गांव में एक बड़ा मेला लगा। गांव के सभी लोग बड़े उत्साह से वहां जा रहे थे। रामू भी अपने परिवार के साथ मेले की तरफ निकल पड़ा। मेले में तरह-तरह की दुकानें थीं, रंग-बिरंगी चीजें और खाने-पीने की चीजें सबको लुभा रही थीं। रामू के बच्चे भी खेल-खिलौने देखकर बहुत खुश हुए।
पर उसी दौरान रामू का ध्यान एक बड़ी दुकान पर गया, जहाँ गांव के मुखिया, हरिया सेठ, कुछ लोगों के साथ खड़े थे। सेठ की दुकान पर काफी भीड़ थी। रामू चुपचाप वहां खड़ा होकर सब देख रहा था। उसने देखा कि सेठ नकली चीजें असली बताकर लोगों को बेच रहा है।
रामू के मन में हलचल मच गई। वह जानता था कि अगर वह लोगों को सच बताएगा तो सेठ उससे नाराज हो जाएगा और गांव के लोग भी उसका साथ नहीं देंगे। फिर भी, रामू ने तय किया कि वह सच बताएगा। उसने जोर से चिल्लाकर कहा, "ये सामान नकली है! सेठ झूठ बोल रहा है!"
सेठ और वहां खड़े सभी लोग रामू की तरफ देखने लगे। कुछ लोग उसे डांटने लगे और कुछ ने उसका मजाक उड़ाया। सेठ भी नाराज हो गया और बोला, "तू कौन होता है मुझे गलत ठहराने वाला? तेरा काम है अपने खेतों में काम करना, यहां अपना दिमाग मत लगा।"
रामू चुपचाप वहां से चला आया, पर उसका मन शांत नहीं था। उसे लगा कि उसने सही किया है, फिर चाहे लोग उसकी बात मानें या न मानें। अगले दिन, जब कुछ लोग सेठ से खरीदे हुए सामान को इस्तेमाल करने लगे, तो वे समझ गए कि रामू सही था। सामान जल्दी ही टूट गया, और लोगों ने महसूस किया कि उनके साथ धोखा हुआ है।
धीरे-धीरे गांव के लोग रामू की सच्चाई की कदर करने लगे। हालांकि शुरुआत में उसकी बातें कड़वी लगती थीं, पर अब लोग समझ गए कि वह उनके भले के लिए ही सच बोलता था। एक दिन सेठ भी रामू के पास आया और माफी मांगते हुए बोला, "तूने जो किया, वह सही था। सच कहने वाले लोग ही सच्चे दोस्त होते हैं।"
इस घटना के बाद, रामू का गांव में सम्मान बढ़ गया। लोगों को समझ में आ गया कि सच्ची बात भले ही कठोर होती है, लेकिन वह हमेशा सही दिशा दिखाती है। By: Akhilesh kumar