बेटी दिवस शीर्षक: "रौशनी की किरण" Beti diwas


             बेटी दिवस


        शीर्षक: "रौशनी की किरण"


गांव की गलियों में दौड़ती-भागती रौशनी अपने माता-पिता की आँखों का तारा थी। उसकी उम्र केवल आठ साल थी, पर उसकी आँखों में दुनिया को बदलने के सपने थे। रौशनी के पिता, रामेश्वर, एक छोटे किसान थे। माँ, सविता, घर संभालने के साथ-साथ बेटियों को पढ़ाई में मदद करती थीं।


गांव में जब से रौशनी पैदा हुई थी, तब से लोगों की टिप्पणियाँ आम हो गई थीं। "बेटी पैदा हुई है, बेटा होता तो किस्मत बदल जाती," कोई कहता। लेकिन रामेश्वर और सविता को अपनी बेटी पर गर्व था। उन्होंने कभी बेटी और बेटे में फर्क नहीं किया। रौशनी का जन्म बेटी दिवस के दिन हुआ था, और शायद इसीलिए उसके नाम का अर्थ भी 'रोशनी' रखा गया था, जो अंधकार को मिटाकर नई राह दिखाए।


रौशनी बचपन से ही बड़ी चंचल और जिज्ञासु थी। स्कूल में उसे पढ़ाई का बहुत शौक था। वह हमेशा कक्षा में अव्वल रहती और शिक्षकों की चहेती थी। एक दिन स्कूल में बेटी दिवस के उपलक्ष्य में कार्यक्रम हुआ। कार्यक्रम में गांव के प्रमुख लोगों ने बेटियों के महत्व पर बातें कीं। उस दिन रौशनी ने पहली बार महसूस किया कि बेटियों को समाज में कम आंका जाता है, जबकि वे भी उतनी ही योग्य होती हैं जितने बेटे। उसकी छोटी सी समझ ने ये तय कर लिया कि वह समाज में इस सोच को बदलने का बीड़ा उठाएगी।


वह अपने गांव की पहली लड़की थी जो उच्च शिक्षा के लिए शहर जाना चाहती थी। उसकी इस इच्छा ने पूरे गांव में खलबली मचा दी। लोग रामेश्वर के पास आकर उन्हें समझाने लगे कि बेटियों को ज्यादा पढ़ाना-लिखाना ठीक नहीं है। "अरे, बेटी है, ज्यादा पढ़ाई से क्या होगा? आखिरकार उसे घर ही तो संभालना है," यह वाक्य बार-बार सुनने को मिलता। लेकिन रामेश्वर और सविता ने रौशनी के सपनों को उड़ान देने का फैसला कर लिया था।


रौशनी जब शहर गई, तो उसने इंजीनियरिंग में दाखिला लिया। चार साल की मेहनत और लगन के बाद उसने अपनी डिग्री हासिल की। इस बीच गांव के लोग उसकी कामयाबी की कहानियाँ सुनने लगे थे। उसकी सफलता ने उन सबकी सोच को बदलने पर मजबूर कर दिया था। आज रौशनी एक सफल इंजीनियर है, जो अपने परिवार के साथ-साथ पूरे गांव के लिए प्रेरणा बन गई है।


बेटी दिवस पर गांव में जब उसका स्वागत हुआ, तो रामेश्वर और सविता की आँखों में गर्व के आँसू थे। रौशनी ने मंच पर खड़े होकर कहा, "बेटियाँ किसी से कम नहीं होतीं। अगर उन्हें सपने देखने और उन्हें पूरा करने की आजादी मिले, तो वे भी समाज को नई दिशा दे सकती हैं।" उसके ये शब्द गांव की हर बेटी और उसके परिवार के दिल में बस गए।


बेटी दिवस पर रौशनी ने साबित कर दिया कि वह केवल एक बेटी नहीं, बल्कि समाज की रोशनी है, जो अंधकार में रास्ता दिखाती है। By: Akhilesh kumar 

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