अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस
किसी गाँव के एक साधारण से घर में रहने वाली सुमन की कहानी बहुत प्रेरणादायक है। सुमन एक खुशमिजाज और होशियार बच्ची थी, जिसे दुनिया से कई सपने देखने का शौक था। उसका परिवार बहुत साधारण था, लेकिन उसके माता-पिता की सोच हमेशा से आधुनिक और प्रेरणादायक रही।
सुमन के माता-पिता ने उसे बेटे और बेटी में कोई भेदभाव नहीं सिखाया। उनके लिए सुमन उनकी सबसे बड़ी ताकत थी। उन्होंने हमेशा उसकी पढ़ाई और उसकी इच्छाओं को महत्व दिया। सुमन भी अपनी पढ़ाई में बहुत तेज थी। वह डॉक्टर बनना चाहती थी और समाज के लिए कुछ करना चाहती थी।
लेकिन गाँव की सोच उतनी प्रगतिशील नहीं थी। वहाँ के लोग बेटियों को घर की चारदीवारी तक सीमित रखना ही उचित समझते थे। सुमन जब भी अपने डॉक्टर बनने के सपने के बारे में बात करती, तो लोग हंसते और कहते, "बेटियों का काम तो सिर्फ घर संभालना है।" पर सुमन के माता-पिता उसकी आँखों में सपने और विश्वास को देखकर हमेशा उसके साथ खड़े रहे।
एक दिन सुमन के गाँव में स्वास्थ्य शिविर लगा। उस शिविर में कई डॉक्टर आए, जिनसे गाँव के लोग बहुत प्रभावित हुए। उसी दौरान सुमन ने शिविर में काम कर रहे डॉक्टरों से मिलने का मौका पाया। डॉक्टरों से मिलकर उसका हौसला और भी बढ़ गया। वह जान गई कि अगर वह मेहनत करे, तो अपने सपने को सच कर सकती है।
सुमन ने कठिन परिश्रम किया और कॉलेज की पढ़ाई के लिए स्कॉलरशिप प्राप्त की। उसके माता-पिता ने भी अपनी पूरी ताकत और समर्थन दिया। कई मुश्किलें आईं, लेकिन सुमन ने कभी हार नहीं मानी।
अंततः सुमन एक सफल डॉक्टर बनी और उसने अपने गाँव में एक अस्पताल खोला, जहाँ न सिर्फ गाँव वालों को मुफ्त इलाज मिला, बल्कि उसने कई लड़कियों को भी प्रेरित किया। अब गाँव की लड़कियाँ भी अपने सपनों को खुलकर देखने लगी थीं।
अंतर्राष्ट्रीय बेटी दिवस पर, सुमन की कहानी एक प्रेरणा है कि अगर एक बेटी को सही समर्थन और दिशा मिले, तो वह असंभव को भी संभव बना सकती है। बेटी सिर्फ घर की रौनक ही नहीं, बल्कि समाज की नींव भी होती है। सुमन ने अपने दृढ़ निश्चय और अपने माता-पिता के समर्थन से यह साबित कर दिखाया।