जीवित्पुत्रिका व्रत (जिउतिया) पर कहानी
जीवित्पुत्रिका व्रत, जिसे संक्षेप में जिउतिया कहा जाता है, माताओं द्वारा अपने संतान की लंबी आयु, सुख और समृद्धि के लिए किया जाने वाला एक महत्वपूर्ण व्रत है। विशेष रूप से बिहार, झारखंड, और उत्तर प्रदेश के क्षेत्रों में इसे बड़े श्रद्धा और आस्था के साथ मनाया जाता है।
यह व्रत आश्विन मास के कृष्ण पक्ष में अष्टमी तिथि को होता है। इस दिन माताएं निर्जला उपवास रखती हैं और पूरे दिन भगवान जीमूतवाहन की पूजा करती हैं। जीमूतवाहन को अमरता और संतान की रक्षा के देवता के रूप में पूजा जाता है।
पारंपरिक मान्यताओं के अनुसार, एक बार जब जीमूतवाहन ने नागों के राजा का जीवन बचाया था, तो उन्होंने अपनी अमरता का वरदान दूसरों के लिए उपयोग किया। इसी घटना के स्मरण में यह व्रत किया जाता है, ताकि संतान भी दीर्घायु और सुरक्षित रहे।
व्रत से एक दिन पहले माताएं नहाय-खाय की प्रक्रिया में अपने घरों और आस-पास के तालाबों या नदियों में स्नान करती हैं। स्नान के बाद वे चने, चावल और सब्जियों से बना प्रसाद ग्रहण करती हैं। इस दिन से व्रत शुरू हो जाता है और अगले दिन निर्जल व्रत रखकर पूजा संपन्न होती है। पूजा के समय महिलाएं अपने बच्चों के लिए भगवान से आशीर्वाद मांगती हैं और पारंपरिक गीत गाती हैं।
नदी या तालाब किनारे पवित्रता से मिट्टी के दिए जलाए जाते हैं, और फलों, फूलों, और मिठाइयों का भोग लगाया जाता है। व्रती महिलाएं अपनी आस्था के प्रतीक रूप में भगवान जीमूतवाहन की कहानी सुनती हैं और साथ ही यह कामना करती हैं कि उनकी संतान सदैव स्वस्थ और खुशहाल रहे।
पूजा के बाद व्रत का समापन होता है, और महिलाएं अगले दिन व्रत का पारण करती हैं। इस व्रत के प्रति आस्था इतनी गहरी होती है कि महिलाएं कठिनाइयों के बावजूद भी इसे पूरा करती हैं। यह केवल एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि मां की अपने बच्चों के प्रति असीम प्रेम और बलिदान का प्रतीक है।
अतः, जीवित्पुत्रिका व्रत माताओं के उस दृढ़ संकल्प और आस्था का पर्व है, जो वे अपनी संतानों की रक्षा और समृद्धि के लिए करती हैं। By: Akhilesh kumar