कर्म ही पूजा है, कर्म ही धर्म है। कर्म, जीवन का आधार है। भारतीय संस्कृति और दर्शन में कर्म को सर्वोपरि माना गया है।

 कर्म ही पूजा है, कर्म ही धर्म है।

 कर्म, जीवन का आधार है। भारतीय संस्कृति और दर्शन में कर्म को सर्वोपरि माना गया है। यह न केवल हमारी प्रगति का मार्ग है, बल्कि हमारी आत्मिक उन्नति का साधन भी है। "कर्म ही पूजा है, कर्म ही धर्म है" यह कथन इस सत्य को रेखांकित करता है कि सच्ची भक्ति और धर्म का पालन कर्म के माध्यम से ही संभव है। 

 कर्म का अर्थ केवल कार्य करना नहीं, बल्कि निष्ठा, ईमानदारी और उद्देश्य के साथ कार्य करना है। भगवद्गीता में भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं, "कर्मण्येवाधिकारस्ते मा फलेषु कदाचन।" अर्थात, तुम्हें केवल अपने कर्म पर अधिकार है, उसके फल पर नहीं। यह संदेश हमें यह सिखाता है कि हमें अपने कर्तव्यों का पालन बिना किसी स्वार्थ या फल की अपेक्षा के करना चाहिए। जब हम अपने कर्म को पूजा की तरह करते हैं, तो वह कार्य न केवल हमें सांसारिक सफलता दिलाता है, बल्कि हमारी आत्मा को भी शुद्ध करता है।

 कर्म को धर्म से जोड़ना भारतीय दर्शन की एक अनूठी विशेषता है। धर्म का अर्थ केवल पूजा-पाठ या रीति-रिवाजों का पालन करना नहीं है। धर्म वह है जो हमें सत्य, न्याय और कर्तव्य के मार्ग पर ले जाए। जब हम अपने कर्म को धर्म मानकर करते हैं, तो हमारा प्रत्येक कार्य समाज और मानवता की भलाई के लिए होता है। उदाहरण के लिए, एक शिक्षक जो बच्चों को ज्ञान देता है, एक चिकित्सक जो रोगियों की सेवा करता है, या एक सामान्य कर्मचारी जो अपनी जिम्मेदारियों को पूरी निष्ठा से निभाता है, वे सभी अपने कर्म के माध्यम से धर्म का पालन कर रहे हैं।

 आज के युग में, जहां लोग त्वरित परिणाम और सुख की तलाश में हैं, कर्म का महत्व और भी बढ़ जाता है। हम अक्सर यह भूल जाते हैं कि सच्चा सुख और संतुष्टि केवल मेहनत और समर्पण से ही प्राप्त हो सकती है। कर्म को पूजा और धर्म मानने का अर्थ है कि हम अपने प्रत्येक कार्य को पूरी लगन और ईमानदारी से करें, चाहे वह कितना ही छोटा क्यों न हो। एक छोटा-सा कार्य भी, यदि सही भावना के साथ किया जाए, तो वह हमारे जीवन को अर्थपूर्ण बना सकता है।

 कर्म का यह दर्शन हमें न केवल व्यक्तिगत विकास की ओर ले जाता है, बल्कि समाज के उत्थान में भी योगदान देता है। जब प्रत्येक व्यक्ति अपने कर्म को धर्म और पूजा की तरह निभाता है, तो समाज में सकारात्मकता, समृद्धि और सामंजस्य बढ़ता है। इसलिए, आइए हम संकल्प लें कि हम अपने प्रत्येक कर्म को पूजा की तरह करेंगे और उसे धर्म का हिस्सा बनाएंगे। यही सच्चा जीवन दर्शन है, जो हमें सुख, शांति और समृद्धि की ओर ले जाता है।(By: Akhilesh kumar)


 

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