पृथ्वी पर एक कहानी: प्रकृति और मानवता का संबंध इस कहानी में पृथ्वी की सुंदरता और

 


                   पृथ्वी पर एक कहानी

पृथ्वी, जिसे सजीव ग्रह भी कहा जाता है, अनगिनत कहानियों का साक्षी है। एक समय की बात है जब धरती पर इंसानों का जन्म हुआ और धीरे-धीरे उन्होंने सभ्यता की नींव रखी। प्रकृति के सौंदर्य से प्रेरित होकर वे खेती, पशुपालन और उद्योग-धंधों में निपुण हुए। उनकी जीवनशैली प्रकृति के साथ जुड़ी थी, और धरती पर हर ओर हरियाली और शांति थी।

इंसानों ने अपनी समझ से पहाड़ों, नदियों और समुद्रों के आसपास बस्तियाँ बसाई। वे पेड़ों से लकड़ी काटते, मगर केवल उतना जितना ज़रूरत थी। खेती के लिए जमीन को जोतते मगर पेड़ों को संरक्षित रखते। पशुओं को पालते, मगर उनका सम्मान करते। यह धरती का सुनहरा युग था जब मानव और प्रकृति के बीच संतुलन बना हुआ था।

वर्षों बीतते गए और इंसानों ने तकनीकी तरक्की की राह पकड़ ली। मशीनों का आविष्कार हुआ, और प्रकृति के साथ सामंजस्य रखने की जगह, इंसान ने अधिक से अधिक संसाधनों को उपयोग में लाना शुरू कर दिया। जंगलों की कटाई होने लगी, कारखानों का निर्माण हुआ, और नदियों में कचरा डालना आम हो गया। प्रकृति धीरे-धीरे कुपित होने लगी। सूखा, बाढ़, और तूफान जैसी प्राकृतिक आपदाएँ धरती पर कहर बरपाने लगीं।

धरती का वातावरण बदलने लगा। जंगलों की जगह अब कंक्रीट के जंगल उगने लगे। नदियाँ, जो कभी स्वच्छ जल से लहराती थीं, अब प्रदूषण से भरने लगीं। मनुष्य के लालच और लापरवाही के कारण धरती की शांति भंग हो गई। पशु-पक्षी पलायन करने लगे, और पर्यावरणीय असंतुलन अपने चरम पर पहुँच गया।

लेकिन एक दिन, इंसानों को अपनी गलती का अहसास हुआ। कुछ लोगों ने यह समझ लिया कि अगर धरती की रक्षा नहीं की गई, तो आने वाली पीढ़ियाँ इसके विनाश का सामना करेंगी। उन्होंने मिलकर एक अभियान चलाया—पेड़ लगाओ, पानी बचाओ, और प्रकृति के साथ फिर से संतुलन बनाओ। स्कूलों में बच्चों को पर्यावरण का महत्व सिखाया जाने लगा। बड़े शहरों में भी हरियाली की वापसी होने लगी। नदियाँ फिर से स्वच्छ होने लगीं और जानवर जंगलों में वापस आने लगे।

धीरे-धीरे धरती ने फिर से अपनी मुस्कान बिखेरनी शुरू की। इंसान ने यह समझ लिया कि वह पृथ्वी का हिस्सा है, उसका शासक नहीं। एक नया युग शुरू हुआ, जहाँ प्राचीन सीखों और आधुनिकता का समन्वय हुआ। यह धरती की कहानी है, जो बताती है कि अगर इंसान अपनी गलतियों से सीख कर फिर से सही राह पकड़ ले, तो प्रकृति फिर से संतुलन में आ सकती है। By: Akhilesh Kumar 

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