जन्म-मृत्यु के चक्र पर आधारित कहानी
कहानी का आरंभ एक छोटे से गांव में होता है, जहां एक बुजुर्ग व्यक्ति, महेश, जीवन के अंतिम पड़ाव पर था। गांव के लोग उसे बहुत सम्मान देते थे, क्योंकि महेश ने अपने जीवन में अनेक कठिनाइयों का सामना किया था, परंतु वह हमेशा शांत और सकारात्मक रहता था।
महेश अक्सर अपने पोते अंशु को जीवन-मृत्यु के चक्र के बारे में कहानियां सुनाया करता था। एक दिन अंशु ने महेश से पूछा, "दादा, क्या मरने के बाद फिर से जन्म होता है?" महेश ने मुस्कुराते हुए कहा, "हां बेटा, जीवन एक चक्र है। मृत्यु अंत नहीं, बल्कि एक नए जीवन की शुरुआत होती है। जैसे प्रकृति में दिन के बाद रात और रात के बाद दिन आता है, वैसे ही जीवन के बाद मृत्यु और मृत्यु के बाद जीवन आता है।"
महेश ने अंशु को एक पुराने पेड़ के पास ले जाकर समझाया, "देखो इस पेड़ को, इसके पत्ते गिरते हैं और नए पत्ते आते हैं। यह एक चक्र है, जैसे हमारे जीवन का चक्र है। जब हम मरते हैं, तो हमारी आत्मा इस संसार से मुक्त होकर एक नए शरीर में प्रवेश करती है।"
कुछ समय बाद, महेश का निधन हो गया। गांव में शोक की लहर दौड़ गई, परंतु अंशु के मन में एक शांति थी। उसने अपने दादा की बातों को समझ लिया था। वह जानता था कि महेश का जीवन समाप्त नहीं हुआ, बल्कि वह एक नए सफर पर चल पड़ा है।
समय बीतता गया, और एक दिन अंशु ने देखा कि उसी पुराने पेड़ के नीचे एक नया पौधा उग आया था। यह दृश्य अंशु को उसके दादा की बातों की याद दिला गया। उसने महसूस किया कि जैसे यह पेड़ अपने पुराने रूप को छोड़कर नए रूप में विकसित हो रहा है, वैसे ही जीवन भी एक निरंतर चक्र है।
अंशु ने अपनी आंखें बंद कीं और महसूस किया कि महेश अब उस पेड़ की हर पत्ती, हर शाखा, और हवा की हर हल्की सी सरसराहट में मौजूद है। उसे यकीन हो गया कि मृत्यु के बाद जीवन अवश्य होता है।
इस तरह, जीवन और मृत्यु के इस चक्र को समझकर अंशु ने अपने जीवन में शांति और संतुलन पाया।
समाप्त
(चित्र: जीवन और मृत्यु के चक्र को दर्शाने वाला एक शांत वातावरण) By: Akhilesh kumar