भारतीय ध्वज की कहानी
भारतीय ध्वज, जिसे हम तिरंगा कहते हैं, भारत की स्वतंत्रता और एकता का प्रतीक है। इसका रंग, डिजाइन और ऐतिहासिक महत्व भारतीय संस्कृति और संघर्ष की गहराई को दर्शाते हैं।
भारतीय ध्वज में तीन रंग हैं—केसरिया (संतरी), सफेद और हरा। केसरिया रंग संघर्ष और बलिदान का प्रतीक है, जबकि सफेद रंग शांति और सत्य का प्रतीक है। हरे रंग का प्रतीकता प्रकृति और समृद्धि को दर्शाती है। ध्वज के बीच में नीले रंग का अशोक चक्र है, जिसमें 24 तीलियाँ हैं, जो धर्म और न्याय के चक्र को दर्शाती हैं।
भारतीय ध्वज का विकास स्वतंत्रता संग्राम के दौरान हुआ। 1906 में, स्वतंत्रता संग्राम के नेता पिंगली वेंकैया ने पहली बार तिरंगे के रूप को प्रस्तुत किया। इसमें लाल और हरे रंग के क्षैतिज पट्टे थे। 1921 में, महात्मा गांधी ने इस ध्वज को अपनाया, और इसे तिरंगे का प्रारूप दिया। गांधीजी ने इसे भारतीय समाज के विविधता और एकता के प्रतीक के रूप में देखा।
15 अगस्त 1947 को, जब भारत स्वतंत्र हुआ, भारतीय ध्वज को औपचारिक रूप से अपनाया गया। यह दिन हर भारतीय के लिए गर्व का दिन है। हर साल, स्वतंत्रता दिवस पर, हमारे देश के हर कोने में तिरंगा फहराया जाता है और हमें अपने देश की स्वतंत्रता और एकता की याद दिलाता है।
भारतीय ध्वज केवल एक कपड़े का टुकड़ा नहीं है; यह हमारे स्वतंत्रता सेनानियों की वीरता, हमारे देश की विविधता और एकता का प्रतीक है। यह हमें यह याद दिलाता है कि हमें अपनी स्वतंत्रता की रक्षा करनी चाहिए और अपने देश के प्रति समर्पण और प्यार रखना चाहिए।
हमारा तिरंगा न केवल एक ध्वज है, बल्कि यह हमारी पहचान और हमारे सपनों का प्रतीक है। इसकी हर एक पट्टी और चक्र हमारे स्वतंत्रता संग्राम की कहानी को दर्शाते हैं और हमें अपने देश के प्रति गर्व और जिम्मेदारी का अहसास कराते हैं। By : Akhilesh kumar