ग्लेशियर की यात्रा glrcear

ग्लेशियर की यात्रा


हिमालय की ऊँचाइयों में बसे छोटे से गाँव में रहने वाला रोहन हमेशा बर्फ से ढके पहाड़ों और ग्लेशियरों की कहानियों से मंत्रमुग्ध रहता था। उसकी दादी उसे बचपन से ग्लेशियरों के बारे में बताती थीं—कैसे वे विशाल बर्फ के पहाड़ होते हैं जो धीरे-धीरे खिसकते हैं और अपने साथ बहुत कुछ बहाकर ले जाते हैं। एक दिन, रोहन ने फैसला किया कि वह खुद एक ग्लेशियर की यात्रा करेगा।

रोहन और उसके दो दोस्त, अमित और सुमन, ग्लेशियर की यात्रा पर निकले। वे गाँव के सबसे अनुभवी गाइड, बृजमोहन के साथ यात्रा कर रहे थे। यह यात्रा आसान नहीं थी, लेकिन उत्साह ने उनकी थकान को दूर कर दिया। वे बर्फ से ढकी चोटियों के बीच से गुजरते हुए धीरे-धीरे ग्लेशियर की ओर बढ़ रहे थे। जैसे-जैसे वे ऊँचाई की ओर बढ़ते गए, ठंड भी बढ़ती गई। हर जगह सफेद बर्फ थी और सूरज की किरणें उस पर चमक रही थीं।

आखिरकार, वे उस स्थान पर पहुंचे जहाँ से ग्लेशियर दिखाई दे रहा था। वह दृश्य अद्भुत था—जैसे कोई विशाल बर्फ का पहाड़ धीमी गति से आगे बढ़ रहा हो। ग्लेशियर के ऊपर से बहते पानी की धाराएँ और नीचे गिरते बर्फ के टुकड़े, यह सब एक रोमांचक अनुभव था। रोहन ने सोचा, "प्रकृति कितनी अद्भुत है! हम इंसान इसके सामने कितने छोटे हैं।"

ग्लेशियर की शांत और ठंडी हवा ने उनके दिलों में एक अनोखा सुकून भर दिया। वहाँ के बर्फीले मैदानों पर चलते हुए उन्हें एक नई समझ मिली कि कैसे ग्लेशियर न केवल पर्यावरण के लिए महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इंसानी जीवन के लिए भी जरूरी हैं। ग्लेशियर पिघलते हैं और नदियों को जीवन देते हैं। यह सोचकर रोहन को गर्व हुआ कि वह ऐसी जगह खड़ा है जो पूरे क्षेत्र के लिए जल का स्रोत है।

गाइड बृजमोहन ने उन्हें ग्लेशियरों के बारे में और जानकारी दी। उन्होंने बताया कि कैसे ग्लोबल वार्मिंग के कारण ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं, जिससे भविष्य में जल संकट पैदा हो सकता है। यह सुनकर रोहन के मन में ग्लेशियरों को बचाने के लिए कुछ करने की इच्छा जागी। उसने अपने दोस्तों से कहा, "हमें इस प्राकृतिक खजाने की सुरक्षा के लिए कुछ करना चाहिए। यह सिर्फ एक बर्फ का पहाड़ नहीं है, यह हमारी आने वाली पीढ़ियों के लिए जीवन की धरोहर है।"

रोहन की यह यात्रा सिर्फ एक रोमांचक सफर नहीं थी, बल्कि उसके जीवन की दिशा बदलने वाली थी। वह अपने गाँव लौटकर ग्लेशियरों और पर्यावरण के संरक्षण के लिए काम करने का संकल्प ले चुका था। उसने ठान लिया था कि वह लोगों को जागरूक करेगा और ग्लेशियरों के महत्त्व को समझाएगा।                                                             ग्लेशियर की उस ठंडी हवा में रोहन को अपने जीवन का उद्देश्य मिल गया था—प्रकृति की रक्षा करना। वह जान चुका था कि अगर हम आज अपनी धरती की देखभाल नहीं करेंगे, तो कल बहुत देर हो जाएगी। By:Akhilesh kumar 








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