भारत के अखबार और साहस: जनता की आवाज, पत्रकारिता का साहस। भारत में पत्रकारिता का इतिहास उतना ही पुराना और गौरवशाली है जितना कि इसका सांस्कृतिक और सामाजिक ताना-बाना।

भारत के अखबार और साहस: जनता की आवाज, पत्रकारिता का साहस।

 भारत में पत्रकारिता का इतिहास उतना ही पुराना और गौरवशाली है जितना कि इसका सांस्कृतिक और सामाजिक ताना-बाना। अखबार, जो समाज का दर्पण कहे जाते हैं, ने न केवल सूचनाओं का प्रसार किया, बल्कि जनता की आवाज को बुलंद करने और सत्ता को चुनौती देने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारतीय पत्रकारिता का साहस आज भी प्रेरणा का स्रोत है, क्योंकि यह न केवल तथ्यों को प्रस्तुत करता है, बल्कि सामाजिक परिवर्तन और जागरूकता का माध्यम भी बनता है।

 भारत में पत्रकारिता की शुरुआत 18वीं शताब्दी में हुई, जब 1780 में जेम्स ऑगस्टस हिकी ने "बंगाल गजट" प्रकाशित किया। यह भारत का पहला अखबार था, जिसने औपनिवेशिक शासन की आलोचना करने का साहस दिखाया। हालांकि, इसे जल्द ही बंद कर दिया गया, लेकिन इसने पत्रकारिता के साहसी स्वरूप की नींव रखी। स्वतंत्रता संग्राम के दौरान, अखबारों ने जनता को जागृत करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। "केसरी" और "मराठा" जैसे अखबारों ने बाल गंगाधर तिलक के नेतृत्व में स्वतंत्रता की अलख जगाई, जबकि "हिंद स्वराज" और "यंग इंडिया" में महात्मा गांधी ने अपने विचारों से जनमानस को प्रेरित किया। इन अखबारों ने न केवल जनता की आवाज को उठाया, बल्कि सत्ता के खिलाफ साहसिक रुख अपनाया।

 आजादी के बाद, भारतीय पत्रकारिता ने नई चुनौतियों का सामना किया। आपातकाल (1975-77) के दौरान, जब प्रेस पर सेंसरशिप थोपी गई, तब भी कई अखबारों ने साहस दिखाया। "इंडियन एक्सप्रेस" जैसे समाचार पत्रों ने खाली पन्ने छापकर सरकार के दमनकारी रवैये का विरोध किया। यह साहस पत्रकारिता की आत्मा को दर्शाता है, जो सत्य और स्वतंत्रता के लिए प्रतिबद्ध है।

 आज के दौर में, डिजिटल युग ने पत्रकारिता को नया आयाम दिया है। सोशल मीडिया और ऑनलाइन न्यूज पोर्टल्स ने सूचनाओं के प्रसार को तेज किया है, लेकिन इसके साथ ही फर्जी खबरों और प्रचार की चुनौती भी बढ़ी है। फिर भी, कई पत्रकार और समाचार पत्र साहस के साथ सत्य को सामने लाने का काम कर रहे हैं। ग्रामीण भारत से लेकर शहरी क्षेत्रों तक, पत्रकार सामाजिक मुद्दों, भ्रष्टाचार, और अन्याय के खिलाफ आवाज उठाते रहे हैं। उदाहरण के लिए, ग्रामीण पत्रकारिता में "खबर लहरिया" जैसे पहल ने महिलाओं और दलितों की आवाज को राष्ट्रीय मंच तक पहुंचाया।

 हालांकि, पत्रकारिता का यह साहस बिना जोखिम के नहीं है। पत्रकारों को धमकियां, हिंसा, और कई बार अपनी जान का खतरा भी उठाना पड़ता है। फिर भी, वे जनता की आवाज बनकर समाज में बदलाव लाने का प्रयास करते हैं। यह साहस भारतीय लोकतंत्र की रीढ़ है।

 निष्कर्षतः भारतीय अखबार और पत्रकारिता का साहस समाज को जागृत करने, सत्ता को जवाबदेह बनाने, और जनता की आवाज को बुलंद करने में महत्वपूर्ण रहा है। चाहे वह स्वतंत्रता संग्राम का दौर हो या आधुनिक डिजिटल युग, पत्रकारिता ने हमेशा सत्य और साहस का रास्ता चुना। यह न केवल एक पेशा है, बल्कि समाज के प्रति एक जिम्मेदारी है, जो जनता और सत्ता के बीच एक सेतु का काम करती है।( By: Akhilesh kumar)


 

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