भगवान कृष्ण का अवतार
भगवान विष्णु ने जब संसार के अधर्म का नाश करने और धर्म की स्थापना करने के लिए अवतार लेने का निश्चय किया, तब वे पृथ्वी पर भगवान कृष्ण के रूप में प्रकट हुए। उनके जन्म का समय कंस के अत्याचार से भरा था, जब कंस ने अपने राज्य में आतंक मचा रखा था और देवकी के सभी संतानें मार डाली थीं।
कृष्ण का जन्म मथुरा के कारागार में हुआ, जहाँ उनके माता-पिता देवकी और वासुदेव को कंस ने कैद कर रखा था। जब कृष्ण का जन्म हुआ, उस समय पूरे कारागार में एक अद्भुत प्रकाश फैल गया। देवकी और वासुदेव को यह ज्ञात हो गया कि उनके पुत्र भगवान विष्णु के अवतार हैं। वासुदेव ने भगवान के निर्देशानुसार कृष्ण को यमुना नदी के पार, गोकुल में नंद और यशोदा के पास पहुंचा दिया।
गोकुल में भगवान कृष्ण ने अपना बचपन बिताया। वे वहां के गोप-बालकों के प्रिय थे और अपने बाल रूप में अनेक चमत्कार किए। उन्होंने कालिया नाग का वध किया और गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी अंगुली पर उठाकर गोकुलवासियों की रक्षा की। उनके बांसुरी की मधुर ध्वनि पर सभी मोहित हो जाते थे, विशेषकर गोपियां। कृष्ण का बचपन मस्ती और शरारतों से भरा हुआ था, फिर भी वे हमेशा धर्म और न्याय के मार्ग पर चलते रहे।
कृष्ण ने केवल शरारत और मस्ती ही नहीं की, बल्कि अपने बाल्यकाल में ही अनेक असुरों का संहार किया। पूतना, तृणावर्त, और बकासुर जैसे राक्षसों का वध उन्होंने खेल-खेल में किया, जिससे यह सिद्ध हो गया कि वे साधारण बालक नहीं, बल्कि भगवान विष्णु के साक्षात अवतार हैं।
कृष्ण का सम्पूर्ण जीवन धर्म की रक्षा, अधर्म का नाश और सत्य की स्थापना के लिए था। उनका जीवन हमें यह सिखाता है कि चाहे परिस्थितियाँ कितनी भी कठिन क्यों न हों, यदि हम धर्म और सत्य के मार्ग पर चलते हैं, तो हमें सफलता अवश्य मिलती है। भगवान कृष्ण का संदेश हमें सदैव जीवन के प्रत्येक क्षण में प्रेरित करता है।By: Akhilesh kumar