अनुच्छेद 8: भारत के बाहर रहने वाले कुछ भारतीय मूल के व्यक्तियों की नागरिकता अधिकार
भारत एक विविधतापूर्ण राष्ट्र है, जहां लाखों लोग विदेशों में बसकर भी अपनी जड़ों से जुड़े रहते हैं। भारतीय संविधान का अनुच्छेद 8 विदेशों में रहने वाले भारतीय मूल के व्यक्तियों की नागरिकता से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान करता है। यह अनुच्छेद मुख्य रूप से उन व्यक्तियों पर लागू होता है जो भारत के बाहर रहते हैं, लेकिन उनके माता-पिता या दादा-दादी भारत के नागरिक थे। संविधान के लागू होने से पहले (26 जनवरी 1950 से पहले) यदि कोई व्यक्ति भारत के बाहर पैदा हुआ हो और उसके पूर्वज भारतीय नागरिक थे, तो वह कुछ शर्तों के साथ भारतीय नागरिकता का दावा कर सकता है। यह प्रावधान भारतीय डायस्पोरा को अपनी मातृभूमि से जोड़े रखने का एक माध्यम है।
अनुच्छेद 8 के अनुसार, यदि कोई व्यक्ति भारत के बाहर रहता है और वह भारत के संविधान लागू होने से पहले पैदा हुआ है, तथा उसके पिता या दादा भारत के नागरिक थे, तो वह भारतीय नागरिक माना जा सकता है। हालांकि, इसके लिए कुछ औपचारिकताएं पूरी करनी पड़ती हैं। व्यक्ति को भारत सरकार के समक्ष अपनी नागरिकता की घोषणा करनी होती है और इसे दर्ज कराना आवश्यक है। यह प्रावधान उन प्रवासी भारतीयों के लिए है जो ब्रिटिश शासन के दौरान या उसके बाद विदेशों में बस गए थे। उदाहरण के लिए, फिजी, मॉरीशस, त्रिनिदाद और टोबैगो जैसे देशों में बड़ी संख्या में भारतीय मूल के लोग रहते हैं, जिनके पूर्वज 19वीं सदी में गिरमिटिया मजदूर के रूप में वहां गए थे। अनुच्छेद 8 उन्हें भारतीय नागरिकता प्रदान करने का आधार देता है, बशर्ते वे निर्धारित प्रक्रिया का पालन करें।
यह अनुच्छेद नागरिकता अधिनियम, 1955 से भी जुड़ा हुआ है। नागरिकता अधिनियम की धारा 5(1)(a) के तहत, विदेशी नागरिकता प्राप्त करने वाले भारतीय मूल के व्यक्ति ओवरसीज सिटिजनशिप ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड के लिए आवेदन कर सकते हैं। OCI योजना 2005 में शुरू हुई थी, जो अनुच्छेद 8 के भावना को आगे बढ़ाती है। OCI धारक भारत में बिना वीजा के आ-जा सकते हैं, संपत्ति खरीद सकते हैं और आर्थिक गतिविधियों में भाग ले सकते हैं, लेकिन वोटिंग अधिकार या सरकारी नौकरी नहीं मिलती। यह योजना उन भारतीयों के लिए है जो अमेरिका, ब्रिटेन, कनाडा, ऑस्ट्रेलिया जैसे देशों में बस गए हैं। वर्तमान में, लगभग 40 लाख से अधिक OCI कार्ड धारक हैं, जो भारत की अर्थव्यवस्था में योगदान देते हैं।
अनुच्छेद 8 की प्रासंगिकता आज भी बनी हुई है, खासकर वैश्वीकरण के युग में। भारतीय डायस्पोरा दुनिया भर में फैला हुआ है – अमेरिका में 45 लाख, यूएई में 35 लाख, सऊदी अरब में 25 लाख से अधिक। ये लोग रेमिटेंस के माध्यम से भारत की अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाते हैं। 2023 में भारत को 111 बिलियन डॉलर से अधिक का रेमिटेंस मिला, जो विश्व में सर्वाधिक है। अनुच्छेद 8 और OCI जैसी योजनाएं इन प्रवासियों को सांस्कृतिक और भावनात्मक रूप से भारत से जोड़े रखती हैं। हालांकि, चुनौतियां भी हैं। कुछ देशों में दोहरी नागरिकता की अनुमति नहीं है, जिससे भारतीय मूल के लोग दुविधा में पड़ जाते हैं। भारत दोहरी नागरिकता को मान्यता नहीं देता, इसलिए अनुच्छेद 9 के तहत विदेशी नागरिकता लेने पर भारतीय नागरिकता स्वतः समाप्त हो जाती है।
सरकार ने समय-समय पर सुधार किए हैं। 2014 PIO (OCI) कोविड-19 महामारी के दौरान OCI धारकों को विशेष छूट दी गई। प्रवासी भारतीय दिवस (प्रवासी भारतीय दिवस) हर साल 9 जनवरी को मनाया जाता है, जो महात्मा गांधी की दक्षिण अफ्रीका से वापसी की याद दिलाता है। यह आयोजन डायस्पोरा को भारत से जोड़ने का प्रयास है।
निष्कर्षतः, अनुच्छेद 8 भारतीय संविधान का एक दूरदर्शी प्रावधान है जो विदेशी धरती पर बसे भारतीयों को उनकी जड़ों से जोड़ता है। यह न केवल कानूनी अधिकार प्रदान करता है, बल्कि सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने में मदद करता है। OCI जैसी योजनाओं के माध्यम से भारत डायस्पोरा को अपनी वैश्विक शक्ति बना रहा है। भविष्य में, डिजिटल युग में इन प्रावधानों को और मजबूत करने की आवश्यकता है ताकि हर भारतीय मूल का व्यक्ति गर्व से कह सके – "मेरा भारत महान"। यह अनुच्छेद भारत की समावेशी नीति का प्रतीक है, जो सीमाओं से परे फैली हुई है।
(Written By: Akhilesh Kumar)


