अनुच्छेद 7 क्या कहता है? जाकिर हुसैन, 1947 में लाहौर से दिल्ली आया था। उसकी जेब में सिर्फ़ एक पुराना पासपोर्ट था, जिसमें लिखा था: “ब्रिटिश इंडिया सब्जेक्ट।” विभाजन की आग में उसने अपना घर, दुकान और दो भाई खो दिए। भारत सरकार ने उसे 1955 के नागरिकता अधिनियम की धारा 5(1)(a) के तहत पंजीकृत नागरिक घोषित किया। ज़ाकिर ने सोचा था कि अब उसकी कहानी ख़त्म हो गई।

जाकिर हुसैन, 1947 में लाहौर से दिल्ली आया था। उसकी जेब में सिर्फ़ एक पुराना पासपोर्ट था, जिसमें लिखा था: “ब्रिटिश इंडिया सब्जेक्ट।” विभाजन की आग में उसने अपना घर, दुकान और दो भाई खो दिए। भारत सरकार ने उसे 1955 के नागरिकता अधिनियम की धारा 5(1)(a) के तहत पंजीकृत नागरिक घोषित किया। ज़ाकिर ने सोचा था कि अब उसकी कहानी ख़त्म हो गई।

 फिर 2019 में CAA आया। अनुच्छेद 7 का जिक्र हुआ। अचानक ज़ाकिर का पुराना पासपोर्ट फिर से सवालों के घेरे में आ गया।

 अनुच्छेद 7 क्या कहता है?

 नागरिकता (संशोधन) अधिनियम, 1955 की धारा 7 उन भारतीय नागरिकों से नागरिकता छीनने का प्रावधान करती है जो “स्वेच्छा से विदेशी नागरिकता प्राप्त कर लेते हैं।” लेकिन 2019 में इसमें एक नया खंड जोड़ा गया—7(2)—जो खास तौर पर पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई प्रवासियों को छूट देता है। शर्त सिर्फ़ इतनी है कि वे 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हों और कम से कम पाँच साल यहाँ रह चुके हों।

 ज़ाकिर की दुविधा

 ज़ाकिर का बेटा अलीम 1980 में कराची गया था—शादी के लिए। वहाँ उसने पाकिस्तानी पासपोर्ट बनवा लिया। 1992 में वह वापस दिल्ली लौटा, लेकिन पासपोर्ट नहीं छोड़ा। 2023 में NRC की अफवाहें उड़ीं। ज़ाकिर को डर सताने लगा: क्या अलीम की पाकिस्तानी नागरिकता पूरी फैमिली को प्रभावित करेगी?

 कानूनी पेच

 सुप्रीम कोर्ट ने इज़हार अहमद vs यूनियन ऑफ़ इंडिया (2021) में साफ़ किया कि धारा 7(1) तभी लागू होती है जब व्यक्ति “स्वेच्छा से” विदेशी नागरिकता लेता है और भारत की नागरिकता त्यागने का इरादा रखता है। अलीम ने पाकिस्तानी पासपोर्ट सिर्फ़ सुविधा के लिए बनवाया था—वह भारत में वोट देता रहा, आधार कार्ड रखता रहा। फिर भी, अनुच्छेद 7(2) की छूट सिर्फ़ गैर-मुस्लिम प्रवासियों के लिए है। अलीम मुस्लिम है।

 दोहरा मापदंड?

 मानवाधिकार कार्यकर्ता हर्ष मंदर कहते हैं, “CAA धर्म के आधार पर नागरिकता देता है, लेकिन अनुच्छेद 7 धर्म के आधार पर ही छीनता है।” दूसरी तरफ, गृह मंत्रालय का तर्क है कि 7(2) सिर्फ़ “उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों” को राहत देता है। ज़ाकिर जैसे लोग जो 1947 में आए, उनके लिए 1955 का पुराना कानून ही लागू होता है।

 ज़मीनी हकीकत

 दिल्ली के जंगपुरा एक्सटेंशन में 73 साल का गुरबचन सिंह रहते हैं। वे 1984 में लाहौर से आए थे। उनके पास पाकिस्तानी पासपोर्ट आज भी है—क्योंकि भारत में नागरिकता मिलने से पहले वे वहाँ की पेंशन लेते थे। CAA ने उन्हें 2020 में नागरिकता दे दी। अनुच्छेद 7(2) ने उनके पुराने पासपोर्ट को “माफ़” कर दिया।

 ज़ाकिर और गुरबचन की कहानियाँ एक ही कॉलोनी में हैं, लेकिन कानून की नज़र में अलग-अलग।

 भविष्य का सवाल

 2024 में सरकार ने CAA के नियम अधिसूचित किए। अब अनुच्छेद 7(2) के तहत आवेदन ऑनलाइन पोर्टल पर हो रहे हैं। लेकिन जिनके परिवार का कोई सदस्य पाकिस्तान में “नागरिक” बना, उनके लिए क्या? सुप्रीम कोर्ट में 200 से ज़्यादा याचिकाएँ लंबित हैं।

 ज़ाकिर अब भी अपने पुराने पासपोर्ट को ताक पर रखे है। उसकी आँखों में सवाल है: “मैंने देश नहीं चुना, देश ने मुझे चुना। फिर मेरी नागरिकता पर सवाल क्यों?”

 (लेखक: अखिलेश कुमार )


 

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