अनुच्छेद 6: पाकिस्तान से भारत आए कुछ व्यक्तियों की नागरिकता अधिकार भारतीय संविधान का अनुच्छेद 6 पाकिस्तान से भारत आए कुछ व्यक्तियों की नागरिकता से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 6: पाकिस्तान से भारत आए कुछ व्यक्तियों की नागरिकता अधिकार

 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 6 पाकिस्तान से भारत आए कुछ व्यक्तियों की नागरिकता से संबंधित महत्वपूर्ण प्रावधान करता है।  यह अनुच्छेद मुख्य रूप से भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय उत्पन्न हुई परिस्थितियों को ध्यान में रखकर बनाया गया था।  15 अगस्त 1947 को भारत स्वतंत्र हुआ, लेकिन विभाजन के कारण लाखों लोग विस्थापित हो गए।  पाकिस्तान से भारत आने वाले हिंदू, सिख और अन्य अल्पसंख्यक समुदाय के लोग अपनी संपत्ति, परिवार और सुरक्षा छोड़कर आए।  अनुच्छेद 6 इन्हीं व्यक्तियों को भारतीय नागरिकता प्रदान करने का आधार देता है, बशर्ते वे निर्धारित शर्तों को पूरा करें।  यह प्रावधान संविधान के भाग 2 (नागरिकता) में शामिल है और विभाजन की त्रासदी को संबोधित करता है।

 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के समय धार्मिक आधार पर सीमाएं खींची गईं।  पश्चिमी पाकिस्तान (वर्तमान पाकिस्तान) से पूर्वी भारत (पश्चिम बंगाल, पंजाब आदि) में लाखों शरणार्थी आए।  इसी तरह पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) से भी प्रवास हुआ।  इन शरणार्थियों को नागरिकता की समस्या का सामना करना पड़ा क्योंकि नई सीमाओं ने उन्हें बेघर कर दिया।  अनुच्छेद 6 को डॉ.  भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने तैयार किया।  इसका उद्देश्य था कि पाकिस्तान से आए व्यक्तियों को भारत में स्थायी नागरिकता मिले, ताकि वे नए राष्ट्र का हिस्सा बन सकें।  यह अनुच्छेद 19 जुलाई 1948 को संविधान सभा में चर्चा के दौरान अपनाया गया।

 अनुच्छेद 6 के मुख्य प्रावधान

 अनुच्छेद 6 कहता है कि कोई व्यक्ति जो 19 जुलाई 1948 से पहले पाकिस्तान से भारत आया हो और उसके बाद भारत में निवास कर रहा हो, वह भारत का नागरिक माना जाएगा।  इसके लिए कुछ शर्तें हैं:

 प्रवास की तिथि: व्यक्ति को 19 जुलाई 1948 से पहले भारत में प्रवास करना चाहिए।  यदि कोई व्यक्ति इस तिथि के बाद आया, तो उसे पंजीकरण की आवश्यकता होती है।

 निवास की अवधि: यदि व्यक्ति 19 जुलाई 1948 के बाद आया, लेकिन संविधान लागू होने (26 जनवरी 1950) से पहले, और कम से कम छह महीने भारत में रह चुका हो, तो वह पंजीकरण कराकर नागरिकता प्राप्त कर सकता है।  पंजीकरण केंद्र सरकार के अधिकारी के पास करना होता है।

 पाकिस्तान से उत्प्रवास: व्यक्ति पाकिस्तान से भारत आया हो और भारत में स्थायी रूप से बसने का इरादा रखता हो।

 यह प्रावधान केवल पाकिस्तान से आने वालों पर लागू होता है, बांग्लादेश (तत्कालीन पूर्वी पाकिस्तान) से आने वालों के लिए अलग व्यवस्था है।  अनुच्छेद 7 पाकिस्तान जाने वालों की नागरिकता छीनने का प्रावधान करता है, जो अनुच्छेद 6 का पूरक है।

 व्यावहारिक प्रभाव और उदाहरण

 विभाजन के समय पंजाब और बंगाल में सबसे अधिक प्रभाव पड़ा।  पंजाब में सिख और हिंदू परिवार पाकिस्तान से भारत आए, जबकि मुस्लिम भारत से पाकिस्तान गए।  लाखों शरणार्थियों को दिल्ली, अमृतसर, कोलकाता जैसे शहरों में बसाया गया।  सरकार ने राहत शिविर लगाए और संपत्ति वितरण किया।  अनुच्छेद 6 के तहत इन शरणार्थियों को वोटिंग अधिकार, नौकरी और संपत्ति का अधिकार मिला।  उदाहरणस्वरूप, पंजाब के कई सिख परिवार जो लाहौर से आए, आज भारतीय नागरिक हैं और समाज में योगदान दे रहे हैं।

 हालांकि, चुनौतियां भी थीं।  कई लोग दस्तावेज खो चुके थे, इसलिए पंजीकरण में देरी हुई।  1950 के बाद नागरिकता अधिनियम 1955 ने इन प्रावधानों को और स्पष्ट किया।  सुप्रीम कोर्ट के कई फैसलों, जैसे लुइस डी रैड बनाम भारत संघ (1955), में अनुच्छेद 6 की व्याख्या की गई कि निवास का प्रमाण आवश्यक है।

 वर्तमान प्रासंगिकता

 आज अनुच्छेद 6 ऐतिहासिक महत्व रखता है, लेकिन नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) 2019 ने पाकिस्तान से आए अल्पसंख्यकों (हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, ईसाई) के लिए नागरिकता आसान बनाई है, यदि वे 31 दिसंबर 2014 से पहले आए हों।  यह अनुच्छेद 6 की भावना को आगे बढ़ाता है।  विभाजन की पीड़ा आज भी कई परिवारों में जीवित है, और यह अनुच्छेद समावेशी भारत की नींव है।

 निष्कर्ष

 अनुच्छेद 6 विभाजन की त्रासदी में मानवीयता का प्रतीक है।  यह दर्शाता है कि भारत ने शरणार्थियों को अपनाया और उन्हें नागरिक बनाया।  आज जब विश्व में शरणार्थी संकट बढ़ रहा है, यह अनुच्छेद हमें सहिष्णुता और एकता की याद दिलाता है।  संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता ने लाखों जीवन को नई दिशा दी।  (Akhilesh Kumar is the author)


 

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