अनुच्छेद 5: संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता भारतीय संविधान का अनुच्छेद 5 नागरिकता के मूल सिद्धांतों की नींव रखता है। यह अनुच्छेद 26 जनवरी 1950 को, जब संविधान लागू हुआ, उस समय भारत में रह रहे व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है।

अनुच्छेद 5: संविधान के प्रारंभ पर नागरिकता

 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 5 नागरिकता के मूल सिद्धांतों की नींव रखता है।  यह अनुच्छेद 26 जनवरी 1950 को, जब संविधान लागू हुआ, उस समय भारत में रह रहे व्यक्तियों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान करता है।  यह प्रावधान इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि स्वतंत्रता के बाद भारत को एक नए राष्ट्र के रूप में अपनी पहचान स्थापित करनी थी।  ब्रिटिश शासन के दौरान नागरिकता का कोई स्पष्ट कानून नहीं था, इसलिए संविधान निर्माताओं ने अनुच्छेद 5 के माध्यम से एक स्पष्ट और समावेशी ढांचा तैयार किया।  इस अनुच्छेद का उद्देश्य उन सभी लोगों को नागरिकता देना था जो भारत से गहराई से जुड़े हुए थे, चाहे उनकी उत्पत्ति कहीं की भी हो।

 अनुच्छेद 5 के अनुसार, संविधान के प्रारंभ पर हर वह व्यक्ति भारत का नागरिक माना जाएगा जो भारत के क्षेत्र में जन्मा हो, या जिसके माता-पिता में से कोई एक भारत में जन्मा हो, या जो संविधान लागू होने से पहले कम से कम पांच वर्ष तक भारत में रह रहा हो।  यह प्रावधान तीन मुख्य श्रेणियों में विभक्त है।  पहली श्रेणी में वे व्यक्ति आते हैं जो भारत के क्षेत्र में पैदा हुए हैं।  यहां "भारत का क्षेत्र" से तात्पर्य उस भौगोलिक क्षेत्र से है जो 26 जनवरी 1950 को भारतीय संघ का हिस्सा था।  इसमें जम्मू-कश्मीर भी शामिल था, हालांकि बाद में अनुच्छेद 370 के कारण कुछ विशेष प्रावधान लागू हुए।

 दूसरी श्रेणी में वे व्यक्ति हैं जिनके माता-पिता में से कोई एक भारत में जन्मा हो।   (jus sanguinis),                                              तीसरी श्रेणी सबसे व्यापक है, जिसमें वे व्यक्ति शामिल हैं जो संविधान लागू होने से ठीक पहले पांच वर्ष तक भारत में निवास कर रहे हों।  यह निवास अवधि इसलिए रखी गई ताकि लंबे समय से भारत में बसे विदेशी मूल के लोग भी नागरिकता प्राप्त कर सकें।  उदाहरण के लिए, ब्रिटिश शासन के दौरान आए यूरोपीय या अन्य प्रवासी जो भारत को अपना घर मान चुके थे, उन्हें यह सुविधा मिली।

 अनुच्छेद 5 का महत्व विभाजन के संदर्भ में और बढ़ जाता है।  1947 के बंटवारे के बाद लाखों लोग भारत और पाकिस्तान के बीच विस्थापित हुए।  कई हिंदू और सिख पाकिस्तान से भारत आए, जबकि मुस्लिम भारत से पाकिस्तान चले गए।  अनुच्छेद 5 ने इन विस्थापितों को नागरिकता प्रदान करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई।  अनुच्छेद 6 और 7 इसके पूरक हैं, जो क्रमशः पाकिस्तान से भारत आए व्यक्तियों और भारत से पाकिस्तान गए व्यक्तियों की नागरिकता से संबंधित हैं।  अनुच्छेद 6 में कहा गया है कि यदि कोई व्यक्ति 19 जुलाई 1948 के बाद पाकिस्तान से भारत आया हो और स्थायी रूप से बसने का इरादा रखता हो, तो वह नागरिकता के लिए आवेदन कर सकता है।  वहीं अनुच्छेद 7 उन लोगों को नागरिकता से वंचित करता है जो भारत से पाकिस्तान चले गए हों।

 संविधान सभा में अनुच्छेद 5 पर व्यापक चर्चा हुई।  डॉ.  बी. आर.  अंबेडकर ने इसे नागरिकता का आधारभूत प्रावधान बताया।  उन्होंने तर्क दिया कि नागरिकता केवल जन्म या रक्त पर आधारित नहीं होनी चाहिए, बल्कि निवास और निष्ठा पर भी।  कई सदस्यों ने चिंता जताई कि पाकिस्तान से आए शरणार्थियों को कैसे शामिल किया जाए।  जवाब में, अनुच्छेद 5 को लचीला बनाया गया ताकि यह समावेशी हो।  हालांकि, यह अनुच्छेद केवल प्रारंभिक नागरिकता तक सीमित है।  बाद की नागरिकता के लिए नागरिकता अधिनियम 1955 लागू होता है, जो जन्म, वंश, पंजीकरण, प्राकृतिककरण और समावेशन के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है।

 अनुच्छेद 5 की व्याख्या सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में की है।  The State Trading Corporation v. Commercial Tax Officer इसी तरह, CAA 2019 के संदर्भ में अनुच्छेद 5 की प्रासंगिकता फिर से उभरी, क्योंकि यह ऐतिहासिक समावेश का प्रतीक है।

 निष्कर्षतः, अनुच्छेद 5 भारतीय संविधान की उदारता और दूरदर्शिता का प्रमाण है।  यह न केवल स्वतंत्र भारत की पहली नागरिकों की सूची तैयार करता है, बल्कि एकता और विविधता में एकता के सिद्धांत को मजबूत करता है।  आज भी, जब नागरिकता के मुद्दे चर्चा में हैं, अनुच्छेद 5 हमें याद दिलाता है कि भारत की नागरिकता निष्ठा, निवास और साझा इतिहास पर आधारित है।  यह अनुच्छेद संविधान की आत्मा का हिस्सा है, जो हर भारतीय को गर्व का अनुभव कराता है।  (Akhilesh Kumar is the author)


 

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