अनुच्छेद 4: पहली अनुसूची और चौथी अनुसूची के संशोधन तथा अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक विषयों का उपबंध करने के लिए अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के अधीन बनाई गई विधियाँ
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 4 भारतीय संघ की संरचना को गतिशील और लचीला बनाने का एक महत्वपूर्ण प्रावधान है। यह अनुच्छेद मुख्य रूप से अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 के तहत बनाई गई विधियों से संबंधित है, जो नए राज्यों के गठन, मौजूदा राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन, नाम बदलने या क्षेत्रीय समायोजन जैसे मुद्दों को नियंत्रित करते हैं। अनुच्छेद 4 स्पष्ट करता है कि ऐसी विधियाँ, जो पहली अनुसूची (जो राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों की सूची देती है) तथा चौथी अनुसूची (जो राज्यसभा में राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को आवंटित सीटों का विवरण देती है) में संशोधन करती हैं, साथ ही अनुपूरक, आनुषंगिक और पारिणामिक विषयों का उपबंध करती हैं, संसद द्वारा साधारण विधेयक के रूप में पारित की जा सकती हैं। यह प्रावधान संविधान संशोधन की जटिल प्रक्रिया से बचाते हुए संघीय ढांचे को अनुकूलित करने की सुविधा प्रदान करता है।
संविधान के भाग 1 में वर्णित अनुच्छेद 2 संसद को नए राज्य या क्षेत्र को संघ में शामिल करने या स्थापित करने की शक्ति देता है, जबकि अनुच्छेद 3 मौजूदा राज्यों की सीमाओं, क्षेत्रफल, नाम या स्थिति में परिवर्तन की अनुमति देता है। इन अनुच्छेदों के तहत कोई विधि बनाने से पहले राष्ट्रपति संबंधित राज्य विधानसभाओं की राय लेते हैं, लेकिन यह राय बाध्यकारी नहीं होती। अनुच्छेद 4 इन विधियों को विशेष दर्जा प्रदान करता है। इसमें कहा गया है कि ऐसी कोई विधि संविधान संशोधन नहीं मानी जाएगी, भले ही वह पहली या चौथी अनुसूची में बदलाव लाए। फलस्वरूप, इसे अनुच्छेद 368 के तहत संविधान संशोधन की विशेष बहुमत प्रक्रिया की आवश्यकता नहीं होती; यह साधारण बहुमत से पारित हो सकती है।
यह प्रावधान संघीय व्यवस्था में केंद्र की प्रधानता को दर्शाता है। भारत जैसे विविधतापूर्ण देश में राज्यों का पुनर्गठन समय-समय पर आवश्यक होता है। उदाहरणस्वरूप, 1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम भाषाई आधार पर राज्यों का गठन करने के लिए अनुच्छेद 3 के तहत पारित किया गया, जिसमें पहली अनुसूची में व्यापक संशोधन हुए। इसी प्रकार, 2000 में छत्तीसगढ़, उत्तरांचल (अब उत्तराखंड) और झारखंड जैसे नए राज्यों का निर्माण अनुच्छेद 3 के अधीन हुआ, और अनुच्छेद 4 ने इन विधियों को साधारण विधेयी प्रक्रिया में रखा। हाल के वर्षों में, 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत अनुच्छेद 370 की समाप्ति के साथ दो केंद्रशासित प्रदेशों का गठन भी इसी श्रेणी में आता है। इन विधियों में राज्यसभा सीटों का पुनर्वितरण (चौथी अनुसूची) और अन्य आनुषंगिक प्रावधान जैसे विधानसभाओं की सीटें, उच्च न्यायालयों की व्यवस्था आदि शामिल होते हैं।
अनुच्छेद 4 का महत्व इसलिए है क्योंकि यह संविधान को स्थिर रखते हुए परिवर्तनों की अनुमति देता है। यदि हर राज्य पुनर्गठन को संविधान संशोधन माना जाता, तो प्रक्रिया अत्यधिक जटिल और राजनीतिक रूप से विवादास्पद हो जाती। उच्चतम न्यायालय ने भी विभिन्न निर्णयों में, जैसे एस. आर. बोम्मई मामले में, इस प्रावधान की वैधता को मान्यता दी है, जो केंद्र की शक्ति को सीमित करते हुए भी संघीय सिद्धांतों का पालन करता है।
हालांकि, इस अनुच्छेद की आलोचना भी होती है। कुछ विद्वान इसे राज्यों की स्वायत्तता पर अंकुश मानते हैं, क्योंकि राज्य विधानसभाओं की राय को अनदेखा किया जा सकता है। फिर भी, यह प्रावधान राष्ट्रीय एकता और प्रशासनिक कुशलता सुनिश्चित करता है। भविष्य में, यदि नए राज्य या क्षेत्रीय समायोजन की आवश्यकता पड़ेगी, अनुच्छेद 4 ही आधार बनेगा।
संक्षेप में, अनुच्छेद 4 भारतीय संविधान की अनुकूलनशीलता का प्रतीक है। यह संघीय ढांचे को मजबूत बनाते हुए बदलती भौगोलिक, भाषाई और प्रशासनिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। बिना इस प्रावधान के, भारत का संघीय विकास संभवतः अवरुद्ध हो जाता। (Akhilesh Kumar is the author)


