अनुच्छेद 3: नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 संघीय ढांचे की रीढ़ है। यह संसद को असाधारण शक्ति प्रदान करता है कि वह नए राज्यों का निर्माण कर सके, मौजूदा राज्यों के क्षेत्रफल में वृद्धि-कमी कर सके, सीमाओं में परिवर्तन कर सके या राज्यों के नाम बदल सके।

अनुच्छेद 3: नए राज्यों का निर्माण और वर्तमान राज्यों के क्षेत्रों, सीमाओं या नामों में परिवर्तन

 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 3 संघीय ढांचे की रीढ़ है।  यह संसद को असाधारण शक्ति प्रदान करता है कि वह नए राज्यों का निर्माण कर सके, मौजूदा राज्यों के क्षेत्रफल में वृद्धि-कमी कर सके, सीमाओं में परिवर्तन कर सके या राज्यों के नाम बदल सके।  यह प्रावधान भारत जैसे विविधतापूर्ण राष्ट्र में प्रशासनिक लोच प्रदान करता है, जहां भाषाई, सांस्कृतिक और आर्थिक कारक अक्सर पुनर्गठन की मांग करते हैं।  अनुच्छेद 3 की संरचना सरल होते हुए भी शक्तिशाली है; यह राष्ट्रपति की सिफारिश पर संसद द्वारा साधारण बहुमत से विधेयक पारित करने की अनुमति देता है, बिना संविधान संशोधन की आवश्यकता के।

 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

 संविधान सभा में डॉ.  बी. आर.  अम्बेडकर ने इस अनुच्छेद को "लोचदार संघवाद" का प्रतीक बताया।  ब्रिटिश काल में प्रांतों की सीमाएं मनमाने ढंग से खींची गई थीं, जो भाषाई और सांस्कृतिक वास्तविकताओं से मेल नहीं खाती थीं।  1953 में न्यायमूर्ति फजल अली आयोग की सिफारिशों के बाद 1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम पारित हुआ, जिसने भाषाई आधार पर आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, केरल आदि राज्यों का गठन किया।  अनुच्छेद 3 ने इस प्रक्रिया को कानूनी आधार दिया।  बाद में 1960 में बॉम्बे को गुजरात और महाराष्ट्र में विभाजित किया गया, 1966 में पंजाब से हरियाणा अलग हुआ, और 2000 में छत्तीसगढ़, उत्तराखंड तथा झारखंड का निर्माण हुआ।  हाल ही में 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम द्वारा इसे दो केंद्रशासित प्रदेशों में बदला गया।

 प्रक्रिया और शर्तें

 अनुच्छेद 3 के तहत विधेयक राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है, जो प्रभावित राज्य की विधानसभा से राय मांगते हैं।  राज्य विधानसभा को दो महीने का समय मिलता है, किंतु उसकी राय बाध्यकारी नहीं है।  संसद इसे स्वीकार या अस्वीकार कर सकती है या संशोधन कर सकती है।  यह प्रावधान केंद्र को मजबूत स्थिति देता है, जो संघीय सिद्धांतों पर सवाल उठाता है।  फिर भी, यह लोकतांत्रिक संवेदनशीलता बनाए रखने का प्रयास करता है।

 महत्व और चुनौतियां

 अनुच्छेद 3 ने भारत को प्रशासनिक दृष्टि से कुशल बनाया है।  छोटे राज्यों से विकास की गति बढ़ी है; उदाहरणस्वरूप, उत्तराखंड में पर्यटन और छत्तीसगढ़ में खनन क्षेत्र फले-फूले।  भाषाई अल्पसंख्यकों को अपनी पहचान मिली, जिससे राष्ट्रीय एकता मजबूत हुई।  आर्थिक असंतुलन को दूर करने में भी यह सहायक रहा।

 लेकिन आलोचनाएं भी हैं।  राज्य विधानसभाओं की राय को नजरअंदाज करने से क्षेत्रीय असंतोष बढ़ता है, जैसे तेलंगाना आंदोलन में देखा गया।  सीमावर्ती विवाद, जैसे कर्नाटक-महाराष्ट्र का बेलगavi मुद्दा, अनसुलझे रहते हैं।  राजनीतिक दुरुपयोग का खतरा भी है; सत्ताधारी दल इसे विपक्षी राज्यों को कमजोर करने के लिए इस्तेमाल कर सकते हैं।

 निष्कर्ष

 अनुच्छेद 3 भारतीय संघवाद की अनूठी विशेषता है।  यह स्थिरता और परिवर्तन के बीच संतुलन बनाता है।  भविष्य में जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण और जलवायु परिवर्तन नए पुनर्गठनों की मांग करेंगे।  संसद को पारदर्शी प्रक्रिया, जनसुनवाई और प्रभाव मूल्यांकन अपनाना चाहिए।  अंततः, यह अनुच्छेद भारत की "एकता में विविधता" को जीवंत रखता है, बशर्ते इसका उपयोग राष्ट्रीय हित में हो।  (Akhilesh Kumar is the author)


 

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