अनुच्छेद 2: नए राज्यों का प्रवेश या स्थापना
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 2 संसद को यह अधिकार प्रदान करता है कि वह नए राज्यों को संघ में प्रवेश दे सकती है या नए राज्य स्थापित कर सकती है। यह प्रावधान संविधान के भाग 1 में संघ और उसके राज्यक्षेत्र से संबंधित है। अनुच्छेद 2 संक्षिप्त लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह भारत की संघीय संरचना को लचीला बनाता है। यह संसद को नए राज्यों के गठन, मौजूदा राज्यों के विलय, सीमाओं में परिवर्तन या नाम बदलने जैसे कार्य करने की शक्ति देता है। यह अनुच्छेद भारतीय संविधान की संघीय प्रकृति को दर्शाता है, जहां केंद्र सरकार को राज्यक्षेत्रीय पुनर्गठन का पूर्ण अधिकार है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत की स्वतंत्रता के समय देश में 500 से अधिक रियासतें और ब्रिटिश प्रांत थे। संविधान सभा ने इनका एकीकरण करने के लिए अनुच्छेद 2 जैसे प्रावधानों की आवश्यकता महसूस की। 1947 में भारत-पाकिस्तान विभाजन के बाद भी कई रियासतें जैसे जूनागढ़, हैदराबाद और कश्मीर का विलय हुआ। अनुच्छेद 2 ने इन प्रक्रियाओं को कानूनी आधार प्रदान किया। 1950 में संविधान लागू होने के बाद यह अनुच्छेद राज्य पुनर्गठन का आधार बना।
राज्य पुनर्गठन अधिनियम, 1956
सबसे प्रमुख उदाहरण 1956 का राज्य पुनर्गठन अधिनियम है। भाषाई आधार पर राज्यों का गठन हुआ। आंध्र प्रदेश तेलुगु भाषी क्षेत्र से, केरल मलयालम भाषी क्षेत्र से, कर्नाटक कन्नड़ भाषी क्षेत्र से और महाराष्ट्र मराठी भाषी क्षेत्र से बना। बॉम्बे को महाराष्ट्र और गुजरात में विभाजित किया गया। यह अनुच्छेद 2 के तहत संसद की शक्ति का उपयोग था। फजल अली आयोग की सिफारिशों पर यह अधिनियम पारित हुआ, जिसने भाषाई विविधता को सम्मान देते हुए संघीय एकता बनाए रखी।
अन्य महत्वपूर्ण उदाहरण
1960 में बॉम्बे राज्य को विभाजित कर गुजरात और महाराष्ट्र बनाए गए। 1966 में पंजाब को हरियाणा और हिमाचल प्रदेश में बांटा गया। 1971 में हिमाचल प्रदेश को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला। उत्तर-पूर्व में नागालैंड (1963), मेघालय (1972), मणिपुर और त्रिपुरा (1972), सिक्किम (1975) को संघ में शामिल किया गया। सिक्किम का विलय अनुच्छेद 2 के तहत हुआ, जो एक स्वतंत्र राष्ट्र से राज्य बन गया।
हाल के वर्षों में 2000 में छत्तीसगढ़, उत्तराखंड और झारखंड का गठन हुआ। 2014 में तेलंगाना आंध्र प्रदेश से अलग हुआ। 2019 में जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन अधिनियम के तहत अनुच्छेद 370 निरस्त कर जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को केंद्रशासित प्रदेश बनाया गया। ये सभी परिवर्तन अनुच्छेद 2 की शक्ति से संभव हुए।
अनुच्छेद 2 और अनुच्छेद 3 की तुलना
अनुच्छेद 2 नए राज्यों के प्रवेश या स्थापना पर केंद्रित है, जबकि अनुच्छेद 3 मौजूदा राज्यों की सीमाओं, नाम या क्षेत्र में बदलाव पर है। दोनों में संसद की शक्ति समान है, लेकिन अनुच्छेद 2 अधिक व्यापक है। इसमें विदेशी क्षेत्रों को शामिल करना भी संभव है, जैसे सिक्किम या गोवा (1961 में पुर्तगाल से मुक्त)। अनुच्छेद 3 में राज्य की सहमति आवश्यक नहीं, केवल राष्ट्रपति की सिफारिश पर विधेयक पेश होता है और संबंधित राज्य विधानसभा की राय ली जाती है, लेकिन बाध्यकारी नहीं।
महत्व और प्रभाव
अनुच्छेद 2 भारत को "अविभाज्य राज्यों का संघ" बनाता है, जहां राज्यक्षेत्रीय परिवर्तन आसान हैं। यह भाषाई, सांस्कृतिक और प्रशासनिक आवश्यकताओं को पूरा करता है। आलोचना यह है कि केंद्र की शक्ति अधिक है, राज्य कमजोर हैं। लेकिन यह राष्ट्रीय एकता बनाए रखता है। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों जैसे बेरुबारी यूनियन (1960) में कहा कि अनुच्छेद 2 संसद को पूर्ण अधिकार देता है।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 2 भारतीय संविधान की गतिशीलता का प्रतीक है। 1950 से अब तक 30 से अधिक राज्य बने या पुनर्गठित हुए। यह प्रावधान भारत को बदलती जरूरतों के अनुरूप ढालता है। भविष्य में भी यह संघीय संरचना को मजबूत बनाएगा। (Written By: Akhilesh Kumar)


