अनुच्छेद 1: संघ का नाम और राज्य क्षेत्र भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 संविधान का प्रथम अनुच्छेद है, जो भाग 1 (संघ और उसके राज्यक्षेत्र) के अंतर्गत आता है। यह अनुच्छेद भारत की संप्रभुता, नाम और क्षेत्रीय संरचना की आधारशिला रखता है।

अनुच्छेद 1: संघ का नाम और राज्य क्षेत्र

 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 1 संविधान का प्रथम अनुच्छेद है, जो भाग 1 (संघ और उसके राज्यक्षेत्र) के अंतर्गत आता है।  यह अनुच्छेद भारत की संप्रभुता, नाम और क्षेत्रीय संरचना की आधारशिला रखता है।  संविधान सभा द्वारा 26 नवंबर 1949 को अपनाए गए इस अनुच्छेद में स्पष्ट रूप से कहा गया है कि "भारत, अर्थात् इंडिया, राज्यों का संघ होगा।"  यह वाक्य न केवल देश के नाम को परिभाषित करता है, बल्कि भारत को एक संघीय ढांचे के रूप में स्थापित करता है, जहां केंद्र और राज्य मिलकर एक अखंड इकाई बनाते हैं।  डॉ.  भीमराव अंबेडकर की अध्यक्षता वाली प्रारूप समिति ने इस अनुच्छेद को इतनी सावधानी से तैयार किया कि यह भारत की एकता और अखंडता का प्रतीक बन गया। 

 अनुच्छेद 1 के तीन खंड हैं।  पहला खंड घोषणा करता है कि भारत राज्यों का संघ होगा।  "" (Federation), "" (Federation), "" डॉ.  अंबेडकर ने संविधान सभा में स्पष्ट किया कि भारतीय संघ अविभाज्य है; राज्य अलग होने का अधिकार नहीं रखते।  यह संघीय व्यवस्था में केंद्र की प्रधानता सुनिश्चित करता है, जिसे "संघीय ढांचे के साथ एकात्मक विशेषताएं" कहा जाता है।  दूसरा खंड कहता है कि राज्य और उनके क्षेत्र पहली अनुसूची में विनिर्दिष्ट होंगे।  पहली अनुसूची में वर्तमान में 28 राज्य और 8 संघ राज्यक्षेत्र सूचीबद्ध हैं, जो समय-समय पर संशोधित होती रही है।  तीसरा खंड भारत के राज्यक्षेत्र को परिभाषित करता है, जिसमें शामिल हैं: (क) राज्यों के क्षेत्र, (ख) संघ राज्यक्षेत्र, और (ग) अर्जित किए गए अन्य क्षेत्र।  इसमें स्पष्टीकरण भी जोड़े गए हैं कि "राज्य" में संघ राज्यक्षेत्र शामिल हैं, सिवाय कुछ अपवादों के। 

 इस अनुच्छेद का ऐतिहासिक महत्व अपार है।  स्वतंत्रता से पूर्व भारत ब्रिटिश प्रांतों, रियासतों और एजेंसियों में बंटा हुआ था।  1947 में विभाजन के बाद, संविधान सभा ने एक मजबूत केंद्र की आवश्यकता महसूस की ताकि देश की एकता बनी रहे।  अनुच्छेद 1 ने "इंडिया, दैट इज भारत" कहकर दोनों नामों को मान्यता दी, जो प्राचीन "भारतवर्ष" और आधुनिक "इंडिया" का सम्मिश्रण है।  यह विवादों का विषय भी रहा; हाल के वर्षों में "इंडिया" को हटाकर केवल "भारत" करने की मांग उठी, लेकिन संविधान दोनों को समान महत्व देता है।  1956 के सातवें संशोधन ने भाग क, ख, ग राज्यों की श्रेणियां समाप्त कर सभी को "राज्य" बना दिया, जो भाषाई आधार पर पुनर्गठन का आधार बना। 

 अनुच्छेद 1 की व्यावहारिक उपयोगिता राज्य पुनर्गठन में दिखती है।  अनुच्छेद 3 संसद को नए राज्य बनाने, सीमाएं बदलने या नाम परिवर्तन की शक्ति देता है, जो अनुच्छेद 1 से जुड़ा है।  उदाहरणस्वरूप, 1956 में आंध्र प्रदेश, 2000 में छत्तीसगढ़, झारखंड और उत्तरांचल (अब उत्तराखंड), 2014 में तेलंगाना और 2019 में जम्मू-कश्मीर को दो संघ राज्यक्षेत्रों में विभाजित करना।  ये बदलाव पहली अनुसूची में संशोधन से होते हैं।  अनुच्छेद 2 विदेशी क्षेत्रों को शामिल करने की अनुमति देता है, जैसे सिक्किम (1975) और गोवा (1961)।  अर्जित क्षेत्रों में पुडुचेरी, दमन-दीव जैसे पूर्व फ्रेंच/पुर्तगाली उपनिवेश शामिल हैं।  यह लचीलापन भारत को गतिशील बनाता है, जहां क्षेत्रीय आकांक्षाओं को समायोजित किया जा सकता है बिना संविधान की मूल संरचना प्रभावित हुए। 

 न्यायिक व्याख्या में सर्वोच्च न्यायालय ने अनुच्छेद 1 को "संघ की अखंडता" का आधार माना।  केशवानंद भारती मामले (1973) में इसे मूल संरचना का हिस्सा घोषित किया गया, अर्थात संसद इसे पूरी तरह बदल नहीं सकती।  यह अनुच्छेद संघीयवाद और एकात्मकता का संतुलन रखता है, जहां राज्य स्वायत्त हैं लेकिन केंद्र सर्वोपरि।  आलोचक कहते हैं कि यह केंद्र को अत्यधिक शक्ति देता है, जैसे अनुच्छेद 356 (राष्ट्रपति शासन) से जुड़कर।  फिर भी, यह भारत की विविधता में एकता का प्रतीक है।

 आज के संदर्भ में, जब क्षेत्रीय अलगाववाद या नाम विवाद उठते हैं, अनुच्छेद 1 हमें याद दिलाता है कि भारत एक "अविभाज्य संघ" है।  यह न केवल कानूनी दस्तावेज है, बल्कि राष्ट्रीय गौरव का स्रोत।  संविधान की प्रस्तावना से जुड़कर यह लोकतंत्र, समानता और न्याय की नींव मजबूत करता है।  अंत में, अनुच्छेद 1 भारत को विश्व के सबसे बड़े लोकतंत्र के रूप में स्थापित करता है, जहां 1.4 अरब लोग एक सूत्र में बंधे हैं।  (Author: Akhilesh Kumar)


 

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