भारतीय न्याय प्रणाली: चुनौतियाँ और सुधार भारतीय न्याय प्रणाली विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक न्याय व्यवस्थाओं में से एक है, जो संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 32 के माध्यम से नागरिकों को समानता, जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा मौलिक अधिकारों की गारंटी प्रदान करती है।

भारतीय न्याय प्रणाली: चुनौतियाँ और सुधार

 भारतीय न्याय प्रणाली विश्व की सबसे बड़ी लोकतांत्रिक न्याय व्यवस्थाओं में से एक है, जो संविधान के अनुच्छेद 14, 21 और 32 के माध्यम से नागरिकों को समानता, जीवन एवं व्यक्तिगत स्वतंत्रता तथा मौलिक अधिकारों की गारंटी प्रदान करती है।  स्वतंत्रता के बाद से यह प्रणाली ब्रिटिश कानूनी ढांचे से विकसित होकर आधुनिक रूप ले चुकी है, किंतु आज भी यह कई गंभीर चुनौतियों से जूझ रही है।  न्याय में देरी, लंबित मुकदमों का बोझ, संसाधनों की कमी और भ्रष्टाचार जैसी समस्याएँ आम नागरिक के न्याय तक पहुँच को कठिन बनाती हैं।  इस लेख में हम इन चुनौतियों का विश्लेषण करेंगे तथा संभावित सुधारों पर विचार विमर्श करेंगे।

 मुख्य चुनौतियाँ

 1.  मुकदमों का भारी बैकलॉग

 राष्ट्रीय न्यायिक डेटा ग्रिड (NJDG) के अनुसार, अक्टूबर 2025 तक देश की अदालतों में लगभग 5 करोड़ से अधिक मुकदमे लंबित हैं।  इनमें से 70% से अधिक सिविल मामले हैं, जबकि आपराधिक मामले भी तेजी से बढ़ रहे हैं।  एक साधारण दीवानी मुकदमा औसतन 10-15 वर्षों में निपटता है, जो "न्याय में देरी, न्याय का इनकार" की कहावत को सार्थक करता है।

 2.  न्यायाधीशों की कमी

 भारत में प्रति दस लाख जनसंख्या पर मात्र 21 न्यायाधीश हैं, जबकि विकसित देशों में यह संख्या 50-150 तक है।  उच्च न्यायालयों और सर्वोच्च न्यायालय में भी रिक्तियाँ बनी हुई हैं।  परिणामस्वरूप, एक न्यायाधीश को प्रतिदिन दर्जनों मामलों की सुनवाई करनी पड़ती है, जिससे गुणवत्ता प्रभावित होती है।

 3.  संसाधन और बुनियादी ढांचे की कमी

 ग्रामीण क्षेत्रों की निचली अदालतें अक्सर भवन, स्टाफ, कंप्यूटर और लाइब्रेरी की कमी से जूझती हैं।  डिजिटल इंडिया के बावजूद, कई अदालतें अभी भी कागजी कार्यवाही पर निर्भर हैं।

 4.  भ्रष्टाचार और पहुंच की असमानता

 निचले स्तर पर दलालों और भ्रष्टाचार की शिकायतें आम हैं।  गरीब और अशिक्षित लोग कानूनी सहायता से वंचित रह जाते हैं।  (Legal Aid):, 5.  जटिल कानूनी प्रक्रिया

 पुराने कानून जैसे भारतीय दंड संहिता (IPC), दीवानी प्रक्रिया संहिता (CPC) और साक्ष्य अधिनियम में अनेक प्रावधान जटिल और समय लेने वाले हैं।  - (Adjournment) - - - सुधार के लिए सुझाव

 1.  वैकल्पिक विवाद निपटारा (ADR) को बढ़ावा

 (Mediation) and (Conciliation) ग्राम न्यायालय अधिनियम, 2008 को प्रभावी ढंग से लागू करने से छोटे-मोटे विवाद स्थानीय स्तर पर ही सुलझ सकते हैं।

 2.  न्यायाधीशों की संख्या में वृद्धि

 लॉ कमीशन की 120वीं रिपोर्ट के अनुसार, 50 न्यायाधीश प्रति दस लाख की दर से नियुक्तियाँ की जाएँ।  अखिल भारतीय न्यायिक सेवा (AIJS) की स्थापना से योग्यता आधारित चयन संभव होगा।

 3.  डिजिटलीकरण और ई-कोर्ट

 वीडियो कॉन्फ्रेंसिंग, ई-फाइलिंग और आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस आधारित केस मैनेजमेंट सिस्टम को सभी अदालतों में लागू किया जाए।  सुप्रीम कोर्ट का ई-कोर्ट प्रोजेक्ट एक सराहनीय कदम है, जिसे जिला स्तर तक विस्तारित करना चाहिए।

 4.  कानूनी सुधार और सरलीकरण

 नए आपराधिक कानून—भारतीय न्याय संहिता, भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता और भारतीय साक्ष्य अधिनियम (2023)—को शीघ्र लागू कर पुरानी जटिलताएँ दूर की जाएँ।  स्थगन की संख्या सीमित करने हेतु सख्त नियम बनाए जाएँ।

 5.  जन जागरूकता और कानूनी शिक्षा

 स्कूलों एवं कॉलेजों में कानूनी साक्षरता को पाठ्यक्रम में शामिल किया जाए।  एनजीओ और सरकारी योजनाओं के माध्यम से ग्रामीण क्षेत्रों में कानूनी शिविर आयोजित किए जाएँ।

 निष्कर्ष

 भारतीय न्याय प्रणाली संविधान की आत्मा है, किंतु इसे सशक्त बनाने के लिए त्वरित और समन्वित प्रयास आवश्यक हैं।  सरकार, न्यायपालिका, बार काउंसिल और नागरिक समाज मिलकर ही "समान न्याय, सबके लिए न्याय" के सपने को साकार कर सकते हैं।  यदि अगले दशक में बैकलॉग को 50% तक कम कर लिया जाए, तो यह न केवल कानूनी व्यवस्था बल्कि सामाजिक-आर्थिक विकास के लिए भी मील का पत्थर सिद्ध होगा।  समय की मांग है कि हम चुनौतियों को अवसर में बदलें और एक तेज, पारदर्शी एवं समावेशी न्याय प्रणाली का निर्माण करें।

 (Written By:Akhilesh Kumar)


 

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