भारत की विदेश नीति वैश्विक मंच पर देश की स्थिति को सुदृढ़ करने, राष्ट्रीय हितों की रक्षा करने और वैश्विक शांति व सहयोग को बढ़ावा देने का एक प्रभावी माध्यम रही है। स्वतंत्रता के बाद से, भारत ने अपनी विदेश नीति को गुट-निरपेक्षता, शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और समावेशी विकास के सिद्धांतों पर आधारित किया है। आज के बदलते वैश्विक परिदृश्य में भारत की कूटनीति और रणनीति ने इसे एक उभरती हुई शक्ति के रूप में स्थापित किया है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और सिद्धांत
स्वतंत्रता के बाद, भारत ने पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में गुट-निरपेक्ष आंदोलन (NAM) को अपनाया, जिसने शीत युद्ध के दौरान पूर्व और पश्चिमी गुटों से दूरी बनाए रखी। पंचशील सिद्धांत, जिसमें शांतिपूर्ण सह-अस्तित्व और परस्पर सम्मान शामिल है, भारत की विदेश नीति का आधार रहा। यह नीति आज भी भारत के वैश्विक संबंधों को आकार देती है, विशेष रूप से पड़ोसी देशों और विकासशील राष्ट्रों के साथ।
वर्तमान रणनीति: बहु-आयामी कूटनीति
आज भारत की विदेश नीति बहु-आयामी और गतिशील है। यह आर्थिक, सामरिक, सांस्कृतिक और पर्यावरणीय पहलुओं को संतुलित करती है। 'नेबरहुड फर्स्ट' नीति के तहत भारत ने दक्षिण एशिया में अपने पड़ोसियों, जैसे भूटान, नेपाल, बांग्लादेश और श्रीलंका के साथ संबंधों को मजबूत किया है। भारत ने 'लुक ईस्ट' से 'एक्ट ईस्ट' नीति की ओर कदम बढ़ाया, जिसके तहत जापान, दक्षिण कोरिया और आसियान देशों के साथ सहयोग बढ़ा है।
G20, BRICS, SCO, and भारत ने जलवायु परिवर्तन, सतत विकास और आतंकवाद जैसे वैश्विक मुद्दों पर सक्रियता दिखाई है। इसके साथ ही, भारत ने संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में स्थायी सदस्यता के लिए अपने दावे को और मजबूत किया है।
आर्थिक कूटनीति
भारत की विदेश नीति में आर्थिक कूटनीति का विशेष महत्व है। 'मेक इन इंडिया' और 'डिजिटल इंडिया' जैसे अभियानों ने विदेशी निवेश को आकर्षित किया है। भारत ने अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और मध्य एशिया के साथ व्यापार और निवेश को बढ़ावा देने के लिए नई रणनीतियाँ अपनाई हैं। इसके अतिरिक्त, भारत ने वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला में अपनी स्थिति को मजबूत करने के लिए सेमीकंडक्टर और नवीकरणीय ऊर्जा जैसे क्षेत्रों में निवेश किया है।
सामरिक रणनीति और चुनौतियाँ
सामरिक दृष्टिकोण से, भारत ने क्वाड (QUAD) जैसे गठबंधनों के माध्यम से हिंद-प्रशांत क्षेत्र में अपनी स्थिति मजबूत की है। यह नीति चीन की बढ़ती आक्रामकता और क्षेत्रीय प्रभाव को संतुलित करने का प्रयास है। हालांकि, भारत को चीन-पाकिस्तान गठजोड़, सीमा विवाद और क्षेत्रीय अस्थिरता जैसी चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। भारत ने इन चुनौतियों का सामना करने के लिए रक्षा सहयोग और तकनीकी साझेदारी को बढ़ावा दिया है, विशेष रूप से अमेरिका, रूस और फ्रांस जैसे देशों के साथ।
निष्कर्ष
भारत की विदेश नीति एक संतुलित और दूरदर्शी दृष्टिकोण को दर्शाती है, जो राष्ट्रीय हितों के साथ-साथ वैश्विक सहयोग को प्राथमिकता देती है। यह नीति भारत को वैश्विक शक्ति के रूप में स्थापित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही है। भविष्य में, भारत को अपनी कूटनीति को और अधिक लचीला और समावेशी बनाना होगा ताकि वैश्विक चुनौतियों का सामना करते हुए वह एक सशक्त और सम्मानित राष्ट्र के रूप में उभरे।
(Akhilesh Kumar is the author)