क्रिसमस, जिसे 'बड़ा दिन' भी कहा जाता है, ईसाई धर्म का सबसे प्रमुख त्योहार है। यह प्रभु यीशु मसीह के जन्म की खुशी में मनाया जाता है। हर साल 25 दिसंबर को विश्वभर में यह पर्व धूमधाम से庆祝 किया जाता है। क्रिसमस न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि प्रेम, शांति, क्षमा और भाईचारे का संदेश देने वाला वैश्विक पर्व बन चुका है।
यीशु मसीह का जन्म बेथलेहम में एक साधारण गौशाला में हुआ था। बाइबिल के अनुसार, मरियम और यूसुफ के पुत्र के रूप में यीशु का जन्म हुआ। चरवाहों को स्वर्गदूतों ने इस खुशखबरी दी, और पूर्व से आए मागी (ज्ञानी पुरुष) ने उन्हें उपहार भेंट किए। यह जन्म मानवता के उद्धार का प्रतीक है, क्योंकि ईसाई मान्यता के अनुसार यीशु ईश्वर के पुत्र थे, जो पापों से मुक्ति दिलाने आए।
क्रिसमस का इतिहास रोचक है। बाइबिल में यीशु के जन्म की सटीक तारीख नहीं बताई गई है। इतिहासकारों के अनुसार, उनका जन्म संभवतः 6-4 ईसा पूर्व के बीच हुआ था, क्योंकि हेरोद राजा की मृत्यु 4 ईसा पूर्व में हुई और यीशु उनके समय में पैदा हुए। 25 दिसंबर की तारीख चौथी शताब्दी में रोमन चर्च द्वारा निर्धारित की गई। उस समय रोमन साम्राज्य में सूर्य देवता (सोल इनविक्टस) का जन्मदिन 25 दिसंबर को मनाया जाता था। चर्च ने इस तारीख को अपनाकर ईसाईकरण किया, ताकि लोग आसानी से इस त्योहार को अपना सकें। पहली बार 336 ईस्वी में रोम में क्रिसमस मनाया गया का रिकॉर्ड मिलता है।
क्रिसमस का महत्व धार्मिक से कहीं अधिक है। यह त्योहार ईश्वर के प्रेम का प्रतीक है – कि ईश्वर मानव रूप में अवतरित हुए। यह शांति, उम्मीद और नई शुरुआत का संदेश देता है। आज क्रिसमस ट्री सजाना, कैरोल गाना, केक काटना, उपहार बांटना और सांता क्लॉज की परंपरा इससे जुड़ी हुई हैं। क्रिसमस ट्री सदाबहार जीवन का प्रतीक है, जबकि सांता क्लॉज संत निकोलस से प्रेरित हैं, जो गरीबों को गुप्त रूप से मदद करते थे।
भारत में भी क्रिसमस बड़े उत्साह से मनाया जाता है। चर्चों में प्रार्थना सभाएं होती हैं, घर सजे जाते हैं, और सभी धर्मों के लोग इसमें शामिल होते हैं। यह त्योहार हमें सिखाता है कि प्रेम और दया से दुनिया बेहतर बन सकती है।
क्रिसमस की रौनक हमें याद दिलाती है कि यीशु का जन्म केवल एक घटना नहीं, बल्कि मानवता के लिए प्रकाश की किरण है। मेरी क्रिसमस!
(Akhilesh Kumar is the author)


