भारत की ऊर्जा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक क्रांति का दौर शुरू हो गया है। दिसंबर 2025 में संसद में पेश किए गए सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI) बिल, 2025 ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है।

 भारत की ऊर्जा क्षेत्र में एक ऐतिहासिक क्रांति का दौर शुरू हो गया है। दिसंबर 2025 में संसद में पेश किए गए सस्टेनेबल हार्नेसिंग एंड एडवांसमेंट ऑफ न्यूक्लियर एनर्जी फॉर ट्रांसफॉर्मिंग इंडिया (SHANTI) बिल, 2025 ने परमाणु ऊर्जा क्षेत्र को निजी कंपनियों के लिए खोल दिया है। दशकों से सरकारी एकाधिकार में रहे इस क्षेत्र में अब निजी क्षेत्र की भागीदारी संभव हो गई है, जो भारत को 2047 तक 100 गीगावाट परमाणु ऊर्जा क्षमता का लक्ष्य हासिल करने में मदद करेगी। यह बिल न केवल ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करेगा बल्कि क्लीन एनर्जी और नेट-जीरो उत्सर्जन के लक्ष्यों को भी तेजी से पूरा करने का माध्यम बनेगा।

 SHANTI बिल की मुख्य विशेषताएं

 SHANTI बिल पुराने परमाणु ऊर्जा कानूनों – एटॉमिक एनर्जी एक्ट, 1962 और सिविल लायबिलिटी फॉर न्यूक्लियर डैमेज एक्ट, 2010 को निरस्त करके एक नया, एकीकृत कानूनी ढांचा स्थापित करता है। इसके प्रमुख प्रावधान इस प्रकार हैं:

 निजी भागीदारी की अनुमति: अब भारतीय निजी कंपनियां या जॉइंट वेंचर लाइसेंस लेकर न्यूक्लियर पावर प्लांट का निर्माण, स्वामित्व, संचालन और डीकमीशनिंग कर सकेंगी। पहले यह अधिकार केवल न्यूक्लियर पावर कॉर्पोरेशन ऑफ इंडिया लिमिटेड (NPCIL) जैसी सरकारी संस्थाओं तक सीमित था।

 विदेशी निवेश: परमाणु परियोजनाओं में 49% तक प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (FDI) की अनुमति दी गई है, जो वैश्विक तकनीक और पूंजी को आकर्षित करेगी।

 देयता में सुधार: ऑपरेटर की देयता को सीमित किया गया है (लगभग 300 मिलियन SDR, यानी करीब 3,300-3,500 करोड़ रुपये प्रति घटना)। आपूर्तिकर्ताओं की असीमित देयता की पुरानी धारा हटा दी गई है, जो विदेशी कंपनियों (जैसे अमेरिका की वेस्टिंगहाउस, फ्रांस की EDF) के लिए बड़ी बाधा थी। अतिरिक्त दावों के लिए सरकारी फंड और बीमा की व्यवस्था होगी।

 रणनीतिक नियंत्रण सरकारी हाथों में: संवेदनशील क्षेत्र जैसे न्यूक्लियर फ्यूल उत्पादन, हेवी वॉटर मैनेजमेंट और रेडियोएक्टिव वेस्ट हैंडलिंग सरकार के पास ही रहेंगे। सुरक्षा और नियमन के लिए एटॉमिक एनर्जी रेगुलेटरी बोर्ड (AERB) को मजबूत किया जाएगा।

 स्मॉल मॉड्यूलर रिएक्टर्स (SMR) को बढ़ावा: छोटे और आधुनिक रिएक्टरों के विकास में निजी क्षेत्र की भूमिका बढ़ेगी, जो डेटा सेंटर्स और उद्योगों के लिए उपयुक्त ह

 क्यों जरूरी था यह बदलाव?

 वर्तमान में भारत की परमाणु ऊर्जा क्षमता मात्र 8.8 गीगावाट है, जो कुल बिजली उत्पादन का सिर्फ 3% है। बढ़ती मांग, डेटा सेंटर्स, AI और मैन्युफैक्चरिंग के कारण 24x7 क्लीन पावर की जरूरत है। नवीकरणीय ऊर्जा (सोलर-विंड) मौसम पर निर्भर है, इसलिए परमाणु ऊर्जा बेसलोड पावर का विश्वसनीय स्रोत है। 2047 तक 100 गीगावाट का लक्ष्य हासिल करने के लिए अरबों डॉलर की पूंजी चाहिए, जो अकेले सरकार नहीं जुटा सकती। निजी भागीदारी से तेज निर्माण, नवाचार और कुशलता आएगी।

 प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नवंबर 2025 में ही घोषणा की थी कि परमाणु क्षेत्र को निजी खिलाड़ियों के लिए खोला जाएगा। कैबिनेट ने दिसंबर में बिल को मंजूरी दी और लोकसभा में पेश किया गया। यह भारत की 2070 नेट-जीरो प्रतिबद्धता और ऊर्जा सुरक्षा को मजबूत करने की दिशा में बड़ा कदम है।

 चुनौतियां और आगे की राह

 हालांकि सुरक्षा चिंताएं बनी हुई हैं, लेकिन बिल में सख्त नियमन और स्वतंत्र रेगुलेटरी फ्रेमवर्क का प्रावधान है। निजी कंपनियां जैसे रिलायंस, टाटा पावर, अडानी और NTPC पहले से ही रुचि दिखा चुकी हैं। वैश्विक कंपनियां भी अब भारत में निवेश के लिए उत्साहित हैं।

 SHANTI बिल भारत को परमाणु ऊर्जा का वैश्विक हब बनाने की दिशा में मील का पत्थर साबित होगा। यह न केवल ऊर्जा संकट का समाधान करेगा बल्कि लाखों नौकरियां पैदा करेगा और पर्यावरण संरक्षण में योगदान देगा। (Author: Akhilesh Kumar)


 

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