शरद ऋतु – कवियों की प्रिय, प्रेमियों की प्यारी भारत में जब आषाढ़-सावन की झमाझम बारिश थम जाती है और भादों की उमस धीरे-धीरे कम होने लगती है, तब प्रकृति एक नई सुंदरता लिए आती है – शरद ऋतु।

शरद ऋतु – कवियों की प्रिय, प्रेमियों की प्यारी

भारत में जब आषाढ़-सावन की झमाझम बारिश थम जाती है और भादों की उमस धीरे-धीरे कम होने लगती है, तब प्रकृति एक नई सुंदरता लिए आती है – शरद ऋतु। यह वह ऋतु है जिसे कवि हज़ारों वर्षों से गाते आए हैं और प्रेमी जिसे अपनी प्रेमिका का सबसे सुहाना रूप मानते हैं। न अत्यधिक गर्मी, न ठंड का कष्ट, न कीचड़, न धूल – बस कोमलता, स्वच्छता और चाँदनी का साम्राज्य।

शरद का आगमन मानो प्रकृति का सबसे सुंदर मेकओवर होता है। आकाश एकदम नीला और साफ हो जाता है, जैसे किसी ने कांच साफ कर दिया हो। बादल तो होते हैं, पर वे हल्के, सफेद, रुई जैसे – जो सूरज को छिपाते नहीं, बस उसकी किरणों को छन-छन कर बिखेरते हैं। शामें लंबी और सुहानी हो जाती हैं। हवा में एक हल्की सी ठंडक घुल जाती है जो तन को भी सिहरन देती है और मन को भी।

इस ऋतु की सबसे बड़ी पहचान है – चाँदनी। शरद पूर्णिमा की रात तो जैसे स्वर्ग धरती पर उतर आता है। चाँद इतना बड़ा, इतना चमकीला और इतना करीब लगता है कि लगता है हाथ बढ़ाओ तो छू लोगे। कवि लिखते हैं –

"राका रजनी में राकेश्वर राजा, चाँदनी बिछाए चारों ओर।"

और सचमुच उस रात चाँदनी इतनी प्रखर होती है कि रात में भी दिन सा लगता है। प्रेमी जोड़े चाँदनी में टहलते हैं, एक-दूसरे के चेहरे को उस चाँदनी में निहारते हैं और लगता है दुनिया में सिर्फ दो लोग हैं – वो और उनका प्रेम।

शरद में फूल भी जैसे अपना सबसे सुंदर रूप दिखाने को बेला हो उठते हैं। शेफालिका (हर्षवर्धन), जूही, कमल, केवड़ा – सब महकने लगते हैं। खेतों में सफेद-सफेद काश के फूल लहराते हैं, जैसे कोई कवि ने आकाश में बादल नहीं, धरती पर चाँदनी बो दी हो। नदियों का पानी इतना साफ हो जाता है कि तल दिखाई देने लगता है। हंस, सारस, कोयल – सब लौट आते हैं। कोयल की कूक फिर से सुनाई देने लगती है।

साहित्य में शरद का स्थान सर्वोपरि है। कालिदास ने ‘मेघदूत’ और ‘ऋतुसंहार’ में शरद की सुंदरता का जो वर्णन किया है, उसे पढ़ते ही मन झूम उठता है –

"प्रकृति: प्रावृषीव यस्यां स्निग्धा: स्यु: शशिन: पथि।

तस्यां शरद ऋतु: प्रोक्तो मेघालोक विवर्जित:॥"

हिंदी के आधुनिक कवियों में भी शरद प्रिय रही है। सूर्यकांत त्रिपाठी ‘निराला’ ने लिखा –

"शरद रात्रि चाँदनी रात,

चाँद खिलता है कमल सा।"

महादेवी वर्मा, जयशंकर प्रसाद, सुमित्रानंदन पंत – सबने शरद को अपने प्रेम और सौंदर्य बोध का आधार बनाया।

प्रेमियों के लिए शरद इसलिए भी प्यारी है क्योंकि यह ऋतु प्रेम को खुल कर जीने देती है। न बारिश में भीगने का डर, न गर्मी में पसीना। बस हल्की शाल ओढ़े, हाथ में हाथ डाले, चाँदनी में टहलते हुए प्रेमी एक-दूसरे को वो बातें कह पाते हैं जो गर्मी में गला सूखने से और बरसात में छाते के नीचे नहीं कह पाते। शरद पूर्णिमा की रात तो प्रेमियों का सबसे बड़ा त्योहार होती है – खीर बनती है, चाँदनी में रखी जाती है, फिर प्रेमी एक-दूसरे को खिलाते हैं।

संक्षेप में कहें तो शरद वह ऋतु है जो प्रकृति को उसका सबसे सुंदर, सबसे शांत और सबसे रोमांटिक रूप देती है। यह कवियों की प्रिय इसलिए है क्योंकि यह कविता को जीवंत कर देती है, और प्रेमियों की प्यारी इसलिए है क्योंकि यह प्रेम को चाँदनी बना देती है।

जब भी शरद आए, एक रात जरूर चाँदनी में टहलें – आपको लगेगा कि सारी कविताएँ और सारे प्रेम गीत सच हो गए हैं।

(Written By: Akhilesh Kumar)


 

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