भारतीय संविधान का अनुच्छेद 18 लोकतांत्रिक भारत की सबसे मजबूत नींव में से एक है। यह अनुच्छेद स्पष्ट रूप से कहता है कि राज्य किसी भी नागरिक को कोई उपाधि (टाइटल) नहीं देगा, सिवाय सैनिक या शैक्षणिक सम्मानों के। न केवल राज्य, बल्कि कोई भी भारतीय नागरिक विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता यदि वह भारत सरकार की सेवा में है। यह प्रावधान ब्रिटिश काल की राजशाही और सामंती व्यवस्था से उपजी "राय बहादुर", "राव बहादुर", "सर", "लॉर्ड" जैसी उपाधियों को हमेशा के लिए समाप्त करने के लिए बनाया गया था।
अनुच्छेद 18 के चार उपखंड:
राज्य कोई उपाधि प्रदान नहीं करेगा (सैन्य एवं शैक्षणिक सम्मान को छोड़कर)।
भारत का कोई नागरिक विदेशी राज्य से कोई उपाधि स्वीकार नहीं करेगा।
भारत सरकार की सेवा में कोई व्यक्ति (चाहे वह राष्ट्रपति हो या क्लर्क) बिना राष्ट्रपति की अनुमति के विदेशी राज्य से कोई उपाधि या सम्मान स्वीकार नहीं कर सकता।
कोई भी विदेशी (जो भारत का नागरिक नहीं है) जो भारत सरकार की सेवा में है, वह भी बिना राष्ट्रपति की अनुमति के कोई उपाधि नहीं रख सकता।
क्यों जरूरी था यह अनुच्छेद?
स्वतंत्रता से पहले अंग्रेज हुकूमत भारतीयों को "सर", "नाइट", "खान बहादुर", "दीवान बहादुर" जैसी उपाधियां देकर उन्हें अपने पक्ष में कर लेते थे। इससे समाज में कृत्रिम श्रेष्ठता और भेदभाव पैदा होता था। संविधान सभा के सदस्यों ने इसे जड़ से खत्म करने का फैसला किया ताकि भारत में सभी नागरिक कानून की नजर में समान हों। डॉ. भीमराव अम्बेडकर ने इसे "समानता का हथियार" कहा था।
अपवाद क्यों रखे गए?
सैन्य सम्मान जैसे परमवीर चक्र, अशोक चक्र, वीर चक्र आदि इसलिए रखे गए क्योंकि ये वीरता और बलिदान के प्रतीक हैं, न कि जन्म या धन की आधार पर मिलने वाली उपाधियां। इसी तरह शैक्षणिक सम्मान (डॉक्टरेट आदि) ज्ञान और योग्यता पर आधारित होते हैं, इसलिए इन्हें छूट दी गई।
क्या भारत रत्न, पद्म विभूषण भी उपाधि हैं?
सुप्रीम कोर्ट ने 1995 में बलजीन्द्र सिंह बनाम दिल्ली प्रशासन मामले में स्पष्ट किया कि भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण, पद्म श्री आदि "उपाधियां" नहीं हैं। इनका प्रयोग नाम के पहले या बाद में (जैसे श्री श्री रविशंकर या सचिन तेंदुलकर, भारत रत्न) नहीं किया जा सकता। ये केवल सम्मान हैं, उपाधि नहीं। इसलिए इनका प्रयोग "सर एम. विश्वेश्वरैया" या "भारत रत्न सी. राजगोपालाचारी" की तरह करना असंवैधानिक है।
वास्तविक मामले:
1954 में राष्ट्रपति को सलाह दी गई थी कि कोई भी व्यक्ति भारत रत्न को नाम के साथ जोड़कर नहीं लिख सकता।
प्रसिद्ध इंजीनियर एम. विश्वेश्वरैया को "सर" की उपाधि ब्रिटिश सरकार ने दी थी। स्वतंत्रता के बाद भी वे "सर" लिखते रहे, जिसे संविधान के खिलाफ माना गया था।
1977 में तत्कालीन विदेश मंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने जुल्फिकार अली भुट्टो से "निशान-ए-पाकिस्तान" सम्मान स्वीकार किया था, जिस पर काफी विवाद हुआ था।
निष्कर्ष:
अनुच्छेद 18 भारतीय गणतंत्र का वह दर्पण है जो दिखाता है कि यहां राजा-महाराजा, नवाब-रईस का नहीं, केवल नागरिक का शासन है। यह अनुच्छेद हमें याद दिलाता है कि भारत में इंसान का मूल्य उसकी उपाधि से नहीं, उसके कर्म और चरित्र से तय होता है। यही वजह है कि दुनिया का सबसे बड़ा लोकतंत्र आज भी अपने नागरिकों को "श्री/श्रीमती" से ऊपर कोई औपचारिक उपाधि नहीं देता। यह सच्ची समानता का प्रतीक है।
( Written By: Akhilesh Kumar)


