अनुच्छेद 10: नागरिकता अधिकारों का बना रहना
भारतीय संविधान का अनुच्छेद 10 नागरिकता के अधिकारों की निरंतरता और संरक्षण की गारंटी प्रदान करता है। यह अनुच्छेद कहता है कि भारत का प्रत्येक नागरिक, जो संविधान के प्रारंभ से नागरिक है या बाद में नागरिकता प्राप्त करता है, नागरिकता के अधिकारों को बनाए रखेगा, जब तक कि कानून द्वारा अन्यथा व्यवस्था न की जाए। सरल शब्दों में, यह अनुच्छेद नागरिकता की स्थिरता सुनिश्चित करता है और इसे मनमाने ढंग से छीना नहीं जा सकता। यह भारतीय संविधान के भाग 2 का हिस्सा है, जो नागरिकता से संबंधित प्रावधानों को निर्धारित करता है। अनुच्छेद 10 की उत्पत्ति संविधान सभा की बहसों से हुई, जहां डॉ. बी. आर. अंबेडकर और अन्य सदस्यों ने नागरिकता को एक मौलिक अधिकार के रूप में मजबूत बनाने पर जोर दिया। यह अनुच्छेद 5 से 9 के साथ मिलकर नागरिकता की आधारशिला रखता है।
ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
भारत की स्वतंत्रता के समय, विभाजन के कारण लाखों लोग विस्थापित हुए। पाकिस्तान से आए शरणार्थी और भारत में रहने वाले लोग नागरिकता के मुद्दे पर उलझे थे। संविधान सभा ने अनुच्छेद 5 और 6 में प्रारंभिक नागरिकता के नियम बनाए, जबकि अनुच्छेद 10 ने इन अधिकारों को स्थायी बनाने का कार्य किया। 1950 में संविधान लागू होने पर, अनुच्छेद 10 ने सुनिश्चित किया कि कोई भी नागरिक बिना कानूनी प्रक्रिया के अपनी नागरिकता न खोए। बाद में, 1955 में नागरिकता अधिनियम पारित हुआ, जो अनुच्छेद 10 के अनुरूप नागरिकता प्राप्त करने, समाप्त करने और बहाल करने के नियम निर्धारित करता है। यह अधिनियम जन्म, वंश, पंजीकरण, प्राकृतिककरण और समावेशन के आधार पर नागरिकता प्रदान करता है।
कानूनी महत्व
अनुच्छेद 10 का मुख्य उद्देश्य नागरिकता को एक संवैधानिक सुरक्षा प्रदान करना है। यह कहता है: "प्रत्येक व्यक्ति जो इस संविधान के प्रारंभ पर भारत का नागरिक है, नागरिक बना रहेगा और नागरिकता के सभी अधिकारों का उपभोग करेगा, जब तक कि संसद द्वारा बनाए गए कानून द्वारा उसकी नागरिकता समाप्त न की जाए।" यहां "संसद द्वारा बनाए गए कानून" का उल्लेख महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह नागरिकता को कार्यपालिका की मनमानी से बचाता है। सुप्रीम कोर्ट ने कई मामलों में इसकी व्याख्या की है। उदाहरण के लिए, इजहार अहमद बनाम भारत संघ (1962) मामले में कोर्ट ने कहा कि नागरिकता एक मौलिक अधिकार है और इसे केवल संवैधानिक प्रक्रिया से ही छीना जा सकता है।
व्यावहारिक उदाहरण और चुनौतियां
व्यावहारिक रूप से, अनुच्छेद 10 ने विदेशी नागरिकों और अवैध प्रवासियों के मुद्दों में भूमिका निभाई है। 1985 में असम समझौते के बाद, नागरिकता संशोधन अधिनियम में बदलाव हुए, जो अनुच्छेद 10 के अनुरूप थे। हाल के वर्षों में, नागरिकता संशोधन अधिनियम 2019 (CAA) ने गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता प्रदान की, लेकिन यह अनुच्छेद 10 की निरंतरता को प्रभावित नहीं करता, क्योंकि यह नए नागरिकों को जोड़ता है, पुरानों को हटाता नहीं। हालांकि, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) जैसे मुद्दों में अनुच्छेद 10 की रक्षा की मांग उठी है। सुप्रीम कोर्ट ने सरबानंद सोनोवाल बनाम भारत संघ (2005) में कहा कि अवैध प्रवासी नागरिक नहीं माने जा सकते, लेकिन वैध नागरिकों के अधिकार बने रहेंगे।
निष्कर्ष
अनुच्छेद 10 भारतीय लोकतंत्र की नींव है, जो नागरिकता को स्थिर और सुरक्षित बनाता है। यह समानता, स्वतंत्रता और न्याय के सिद्धांतों को मजबूत करता है। भविष्य में, वैश्विक प्रवासन और डिजिटल युग में इसकी प्रासंगिकता बढ़ेगी। संसद को कानून बनाते समय अनुच्छेद 10 की भावना का सम्मान करना चाहिए, ताकि कोई भी नागरिक असुरक्षित महसूस न करे। इस प्रकार, अनुच्छेद 10 न केवल कानूनी प्रावधान है, बल्कि राष्ट्रीय एकता का प्रतीक है। (Written By: Akhilesh Kumar)


