अनुच्छेद 11: नागरिकता के संबंध में विधि बनाने की संसद की शक्ति भारतीय संविधान का अनुच्छेद 11 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो संसद को नागरिकता से संबंधित कानून बनाने की व्यापक शक्ति प्रदान करता है।

अनुच्छेद 11: नागरिकता के संबंध में विधि बनाने की संसद की शक्ति

 भारतीय संविधान का अनुच्छेद 11 एक महत्वपूर्ण प्रावधान है जो संसद को नागरिकता से संबंधित कानून बनाने की व्यापक शक्ति प्रदान करता है।  यह अनुच्छेद संविधान के भाग II में स्थित है, जो नागरिकता से जुड़े मूलभूत अधिकारों और नियमों को निर्धारित करता है।  अनुच्छेद 11 स्पष्ट रूप से कहता है: "इस संविधान के उपबंधों में किसी बात के होते हुए भी, संसद विधि द्वारा नागरिकता के अर्जन और समाप्ति के लिए तथा नागरिकता से संबंधित सभी अन्य विषयों के लिए उपबंध कर सकेगी।"  यह प्रावधान संविधान निर्माताओं की दूरदर्शिता को दर्शाता है, क्योंकि स्वतंत्रता के समय भारत में नागरिकता एक जटिल मुद्दा था।  विभाजन के कारण लाखों लोग विस्थापित हुए थे, और पाकिस्तान तथा भारत के बीच नागरिकता का निर्धारण आवश्यक हो गया था।  इस अनुच्छेद के माध्यम से संसद को लचीलापन दिया गया ताकि वह समय-समय पर बदलती परिस्थितियों के अनुरूप कानून बना सके।

 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि

 संविधान सभा में इस अनुच्छेद पर विस्तृत चर्चा हुई।  डॉ.  बी. आर.  अम्बेडकर ने इसे प्रस्तुत करते हुए कहा कि नागरिकता एक गतिशील अवधारणा है, जो अंतरराष्ट्रीय संबंधों, प्रवासन और राष्ट्रीय सुरक्षा से प्रभावित होती है।  इसलिए, इसे संविधान में कठोर रूप से बांधने के बजाय संसद पर छोड़ना उचित है।  अनुच्छेद 5 से 10 तक संविधान में प्रारंभिक नागरिकता के नियम दिए गए हैं, जैसे कि 26 जनवरी 1950 को भारत में निवास करने वाले व्यक्ति भारतीय नागरिक माने जाएंगे।  लेकिन अनुच्छेद 11 इनसे ऊपर है और संसद को पूर्ण अधिकार देता है कि वह इन नियमों को संशोधित कर सके या नए कानून बना सके।  यह प्रावधान ब्रिटिश कॉमनवेल्थ मॉडल से प्रेरित है, जहां नागरिकता को विधायी रूप से नियंत्रित किया जाता है।

 नागरिकता अधिनियम, 1955

 अनुच्छेद 11 की शक्ति का उपयोग करते हुए संसद ने 1955 में नागरिकता अधिनियम पारित किया।  यह अधिनियम नागरिकता के अर्जन के पांच तरीके निर्धारित करता है: जन्म से, वंश से, पंजीकरण से, натуралиकरण से और क्षेत्रीय समावेश से।  उदाहरणस्वरूप, जन्म से नागरिकता के लिए 26 जनवरी 1950 से 1 जुलाई 1987 के बीच भारत में जन्मे व्यक्ति को नागरिक माना जाता है।  इसके बाद नियम बदले गए ताकि अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए माता-पिता दोनों की नागरिकता आवश्यक हो।  1987 से 2003 तक एक माता-पिता की भारतीय नागरिकता पर्याप्त थी, लेकिन 2003 के संशोधन ने इसे और सख्त कर दिया।  वंश से नागरिकता विदेश में जन्मे बच्चों को मिलती है यदि उनके माता-पिता में से एक भारतीय नागरिक हो।  पंजीकरण से कॉमनवेल्थ देशों के नागरिक या भारतीय मूल के व्यक्ति आवेदन कर सकते हैं।

 प्रमुख संशोधन और विवाद

 समय के साथ इस अधिनियम में कई संशोधन हुए हैं, जो अनुच्छेद 11 की शक्ति का प्रमाण हैं।  1986 में असम समझौते के बाद अवैध प्रवासियों को रोकने के लिए नियम कड़े किए गए।  2003 में विदेशी नागरिकों के लिए ओवरसीज सिटीजनशिप ऑफ इंडिया (OCI) कार्ड शुरू किया गया, जो भारतीय मूल के विदेशियों को विशेष अधिकार देता है, लेकिन पूर्ण नागरिकता नहीं।  सबसे विवादास्पद संशोधन 2019 का नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) है।  यह अधिनियम पाकिस्तान, बांग्लादेश और अफगानिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शरणार्थियों को तेजी से नागरिकता प्रदान करता है, यदि वे 31 दिसंबर 2014 से पहले भारत आए हों।  यह मुस्लिम शरणार्थियों को बाहर रखता है, जिससे धार्मिक भेदभाव का आरोप लगा।  विरोधियों का कहना है कि यह अनुच्छेद 14 (समता का अधिकार) का उल्लंघन करता है, जबकि समर्थक इसे ऐतिहासिक अन्याय सुधारने वाला बताते हैं।  सुप्रीम कोर्ट में इस पर चुनौतियां लंबित हैं, जो अनुच्छेद 11 की सीमाओं को परखेंगी।

 महत्व और चुनौतियां

 अनुच्छेद 11 का महत्व यह है कि यह नागरिकता को स्थिर नहीं रखता, बल्कि इसे राष्ट्रीय हितों के अनुरूप ढालता है।  वैश्विककरण, आतंकवाद और जलवायु परिवर्तन जैसे मुद्दों से प्रवासन बढ़ रहा है, इसलिए संसद को यह शक्ति आवश्यक है।  हालांकि, यह शक्ति असीमित नहीं है; यह मौलिक अधिकारों के अधीन है।  न्यायालय हस्तक्षेप कर सकता है यदि कानून मनमाना हो।  उदाहरणस्वरूप, एनआरसी (नेशनल रजिस्टर ऑफ सिटिजन्स) और CAA के संयोजन से लाखों लोग प्रभावित हुए, खासकर असम में।

 निष्कर्ष

 अनुच्छेद 11 भारतीय संविधान की लोचदारता का प्रतीक है।  यह संसद को नागरिकता के नियम बनाने की स्वतंत्रता देता है, जिससे देश की एकता और सुरक्षा सुनिश्चित होती है।  लेकिन इसका दुरुपयोग न हो, इसके लिए न्यायिक समीक्षा महत्वपूर्ण है।  भविष्य में डिजिटल नागरिकता या डुअल सिटीजनशिप जैसे मुद्दे उभर सकते हैं, जहां यह अनुच्छेद फिर उपयोगी सिद्ध होगा।  कुल मिलाकर, यह प्रावधान भारत को एक गतिशील राष्ट्र बनाता है, जहां नागरिकता केवल जन्म का अधिकार नहीं, बल्कि कानूनी ढांचे का हिस्सा है।  (Written By: Akhilesh Kumar)


 

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