भारत का कानूनी ढांचा विश्व के सबसे जटिल और विविधतापूर्ण प्रणालियों में से एक है, जो प्राचीन धार्मिक ग्रंथों से लेकर आधुनिक संवैधानिक सिद्धांतों तक फैला हुआ है। यह ढांचा मुख्य रूप से भारतीय उपमहाद्वीप की प्राचीन प्रथाओं, धार्मिक निर्देशों और औपनिवेशिक प्रभावों से विकसित हुआ है। आज, भारतीय कानून संविधान पर आधारित है, जो समानता, न्याय और मौलिक अधिकारों को सुनिश्चित करता है। इसका विकास सदियों की सांस्कृतिक, राजनीतिक और सामाजिक परिवर्तनों का परिणाम है, जो लोकतंत्र की मजबूती के लिए आवश्यक रहा है।
प्राचीन काल में भारतीय कानूनी ढांचे की नींव वेदों, उपनिषदों और स्मृतियों में रखी गई। मनुस्मृति जैसी ग्रंथों ने सामाजिक व्यवस्था, दंड और नैतिकता के नियम निर्धारित किए। ये कानून धार्मिक और सामुदायिक आधार पर थे, जहां राजा न्याय का प्रतीक था। प्राचीन विश्वविद्यालय जैसे तक्षशिला और नालंदा में कानूनी शिक्षा दी जाती थी, जो आवासीय प्रणाली पर आधारित थी। इस काल में कानून मुख्य रूप से हिंदू और बौद्ध सिद्धांतों से प्रभावित था, जो नैतिकता और कर्म पर जोर देते थे।
मध्यकाल में मुस्लिम शासकों के आगमन के साथ कानूनी प्रणाली में बदलाव आया। मुगल काल में इस्लामी कानून (शरिया) और स्थानीय प्रथाओं का मिश्रण देखा गया। अकबर जैसे शासकों ने धर्मनिरपेक्ष नीतियां अपनाईं, लेकिन कानून मुख्य रूप से व्यक्तिगत मामलों में धार्मिक रहता था। हिंदू कानून का विकास भी जारी रहा, जो वर्तमान में अनुच्छेद 141 के तहत सर्वोच्च न्यायालय के फैसलों से बाध्यकारी होता है।
ब्रिटिश काल में भारतीय कानूनी ढांचे का आधुनिकीकरण हुआ। 1773 का रेगुलेटिंग एक्ट पहला महत्वपूर्ण कदम था, जिसने बंगाल में न्यायिक प्रणाली स्थापित की। उसके बाद पिट्स इंडिया एक्ट 1784, चार्टर एक्ट 1793, 1813, 1833 और 1853 ने कंपनी शासन को मजबूत किया। 1858 के गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट ने क्राउन शासन की शुरुआत की, जबकि 1861 का इंडियन काउंसिल एक्ट और 1909 का मॉर्ले-मिंटो रिफॉर्म्स ने विधायी परिषदों का विस्तार किया। 1919 का मॉंटेग्यू-चेम्सफोर्ड रिफॉर्म्स और 1935 का गवर्नमेंट ऑफ इंडिया एक्ट ने संघीय ढांचे की नींव रखी, जो बाद में संविधान में शामिल हुई। उन्नीसवीं सदी के अंत तक कानूनी पेशा उभरा, जहां भारतीय वकीलों ने अदालतों में सम्मान की मांग की और कानून विकास में योगदान दिया है।
स्वतंत्रता के बाद 26 जनवरी 1950 को भारतीय संविधान लागू हुआ, जो दुनिया का सबसे लंबा लिखित संविधान है। डॉ. बी. आर. अंबेडकर की अध्यक्षता में संविधान सभा ने इसे तैयार किया, जो ब्रिटिश, अमेरिकी और अन्य संविधानों से प्रेरित है। अनुच्छेद 124 के तहत सर्वोच्च न्यायालय स्थापित हुआ, जो 1958 में दिल्ली में स्थानांतरित हुआ। न्यायिक व्यवस्था एंग्लो-इंडियन काल से विकसित हुई, जिसमें उच्च न्यायालय और जिला अदालतें शामिल हैं।
वर्तमान में कानूनी ढांचे का विकास कानून सुधारों से हो रहा है, जैसे आपराधिक न्याय प्रणाली में बदलाव (बीएनएस, बीएनएसएस), डिजिटल कानून और लिंग समानता। न्यायिक सक्रियता ने पर्यावरण, मानवाधिकार और भ्रष्टाचार जैसे मुद्दों पर प्रभाव डाला। हालांकि, चुनौतियां जैसे न्यायिक देरी और पहुंच की कमी बनी हुई हैं, लेकिन ई-कोर्ट और कानूनी सहायता योजनाएं विकास का हिस्सा हैं।
कुल मिलाकर, भारत का कानूनी ढांचा प्राचीन जड़ों से आधुनिक लोकतंत्र तक का सफर दर्शाता है, जो निरंतर विकसित हो रहा है ताकि समाज की जरूरतों को पूरा कर सके। यह ढांचा न्याय की गारंटी देता है और वैश्विक स्तर पर एक मॉडल है। (Akhilesh Kumar is the author)