भारत-चीन डिपा: समझौते की राह पर
भारत और चीन, दो एशियाई महाशक्तियाँ, जिनके बीच सांस्कृतिक, आर्थिक और भौगोलिक संबंध प्राचीन काल से चले आ रहे हैं, आज भी अपनी सीमा विवादों के कारण चर्चा में रहते हैं। इनमें से एक प्रमुख विवाद है डिपा (लिपुलेक पास) को लेकर, जो भारत, चीन और नेपाल के बीच तनाव का कारण बना हुआ है। हाल के वर्षों में, भारत और चीन के बीच डिपा को लेकर हुए समझौते ने न केवल द्विपक्षीय संबंधों को प्रभावित किया है, बल्कि नेपाल के साथ भी कूटनीतिक हलचल पैदा की है। यह लेख इस समझौते के महत्व और इसकी भविष्य की संभावनाओं पर प्रकाश डालता है।
डिपा, उत्तराखंड के पिथौरागढ़ जिले में स्थित लिपुलेक पास, भारत-चीन सीमा पर एक महत्वपूर्ण व्यापारिक और रणनीतिक मार्ग है। यह क्षेत्र भारत के लिए धार्मिक और सामरिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह कैलाश मानसरोवर यात्रा का प्रमुख मार्ग है। 2015 में भारत और चीन के बीच लिपुलेक पास को व्यापारिक मार्ग के रूप में विकसित करने का समझौता हुआ था, जिसने नेपाल को असहज कर दिया। नेपाल का दावा है कि यह क्षेत्र उसका हिस्सा है, और इस समझौते ने उसके कूटनीतिक विरोध को जन्म दिया। हाल ही में, अगस्त 2025 में, भारत और चीन के विदेश मंत्रियों, एस. जयशंकर और वांग यी, के बीच हुए समझौते में लिपुलेक पास को फिर से व्यापारिक मार्ग के रूप में उपयोग करने की सहमति बनी, जिससे नेपाल ने कड़ा विरोध दर्ज किया।
इस समझौते का उद्देश्य भारत-चीन सीमा पर शांति और स्थिरता को बढ़ावा देना है। 1954 से लिपुलेक के माध्यम से सीमा व्यापार चल रहा था, जो कोविड-19 और अन्य कारणों से बाधित हो गया था। अब इसे पुनर्जनन की दिशा में कदम उठाए गए हैं। भारत का कहना है कि उसकी स्थिति इस मुद्दे पर स्पष्ट है और लिपुलेक भारत का हिस्सा है, जबकि नेपाल का दावा इसे त्रिपक्षीय विवाद बनाता है। इस समझौते से भारत और चीन के बीच व्यापारिक संबंधों को मजबूती मिलने की उम्मीद है, लेकिन नेपाल के साथ तनाव बढ़ने का खतरा भी बना हुआ है।
भारत-चीन संबंधों का इतिहास जटिल रहा है। 1962 के युद्ध से लेकर 2020 की गलवान घाटी झड़प तक, दोनों देशों के बीच सीमा विवाद बार-बार उभरते रहे हैं। डिपा जैसे मुद्दों पर समझौते दोनों देशों के लिए कूटनीतिक और आर्थिक दृष्टि से महत्वपूर्ण हैं। हाल के वर्षों में, विशेष रूप से 2024 और 2025 में, दोनों देशों ने सीमा पर तनाव कम करने के लिए कई कदम उठाए हैं, जैसे देपसांग और डेमचोक में सैनिकों की वापसी। डिपा पर समझौता भी इसी दिशा में एक कदम है, जो आपसी विश्वास और सहयोग को बढ़ावा दे सकता है।
हालांकि, इस समझौते के सामने कई चुनौतियाँ हैं। नेपाल का विरोध और क्षेत्रीय भू-राजनीतिक गतिशीलता इसे जटिल बनाती हैं। भारत को अपनी रणनीतिक स्थिति को मजबूत करते हुए नेपाल के साथ भी संतुलन बनाना होगा। भविष्य में, डिपा पर त्रिपक्षीय बातचीत ही इस विवाद का स्थायी समाधान हो सकती है। भारत और चीन के बीच समझौते की यह राह न केवल सीमा शांति के लिए, बल्कि क्षेत्रीय स्थिरता के लिए भी महत्वपूर्ण है।( Akhilesh Kumar is the author.)