राजनीति, जिसे अक्सर सत्ता का खेल कहा जाता है,
न केवल नीतियों और निर्णयों का मंच है, बल्कि यह मानवीय महत्वाकांक्षाओं, चालबाजियों और अनकहे किस्सों का एक ऐसा संसार है, जो इतिहास के पन्नों में दर्ज होता है।
यह खेल केवल संसद या विधानसभाओं तक सीमित नहीं, बल्कि गलियारों, बंद कमरों और गुप्त बैठकों में भी खेला जाता है। इस लेख में हम राजनीति की कुछ अनकही कहानियों की पड़ताल करेंगे, जो सत्ता के इस खेल की जटिलता को उजागर करती हैं। सत्ता की चाहत हर युग में रही है।
प्राचीन भारत में चाणक्य जैसे रणनीतिकारों ने राजा चंद्रगुप्त मौर्य को सत्ता के शीर्ष पर पहुँचाने के लिए कूटनीति और चतुराई का सहारा लिया। चाणक्य की नीतियाँ आज भी राजनीति के विद्यार्थियों के लिए प्रेरणा हैं।
उनकी कहानी बताती है कि सत्ता का खेल केवल शक्ति से नहीं, बल्कि बुद्धि और धैर्य से भी जीता जाता है। आधुनिक भारत में भी ऐसे कई किस्से हैं, जो सत्ता की इस गहमागहमी को दर्शाते हैं।
1970 के दशक में इंदिरा गांधी का उदय और आपातकाल की घोषणा एक ऐसा अध्याय है, जो आज भी चर्चा में रहता है। यह दौर न केवल सत्ता को बनाए रखने की जद्दोजहद को दर्शाता है, बल्कि यह भी दिखाता है कि सत्ता का दुरुपयोग कितना खतरनाक हो सकता है।
इस घटना ने भारतीय लोकतंत्र की नींव को हिलाकर रख दिया था, लेकिन साथ ही जनता की ताकत को भी उजागर किया। सत्ता के खेल में गठबंधन और विश्वासघात भी आम हैं।
1990 के दशक में भारत ने गठबंधन सरकारों का दौर देखा, जहाँ छोटे-छोटे दल सत्ता की कुंजी बन गए। ऐसे में नेताओं की चालबाजी और अवसरवादिता सामने आई।
एक बार एक छोटे दल के नेता ने समर्थन देने का वादा किया, लेकिन अंतिम क्षण में पलट गए, जिससे सरकार गिर गई। यह घटना बताती है कि सत्ता के खेल में वफादारी अक्सर हितों के आगे झुक जाती है।
आज के दौर में सोशल मीडिया ने सत्ता के खेल को और जटिल बना दिया है। नेता अब न केवल जनता के बीच, बल्कि डिजिटल मंचों पर भी अपनी छवि गढ़ते हैं। फर्जी खबरें, ट्रोल आर्मी और प्रचार तंत्र सत्ता की लड़ाई का हिस्सा बन गए हैं।
2019 के आम चुनावों में देखा गया कि कैसे डिजिटल रणनीतियाँ वोटरों को प्रभावित करने में महत्वपूर्ण रहीं। यह नया युग सत्ता के खेल को और रोमांचक, लेकिन खतरनाक भी बना रहा है। सत्ता का खेल कभी खत्म नहीं होता।
यह एक ऐसी शतरंज की बिसात है, जहाँ हर चाल सोची-समझी होती है, लेकिन परिणाम हमेशा अनिश्चित रहते हैं। ये अनकही कहानियाँ हमें याद दिलाती हैं कि सत्ता न केवल जिम्मेदारी है, बल्कि एक ऐसा दायित्व है, जिसे संभालने के लिए नैतिकता और दूरदर्शिता की जरूरत होती है।( By: Akhilesh kumar)