दुर्गा पूजा: भारत की सांस्कृतिक धरोहर का उत्सव
दुर्गा पूजा, भारत की समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर का एक जीवंत और आनंदमय उत्सव है, जो मुख्य रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम, बिहार और पूर्वोत्तर भारत में धूमधाम से मनाया जाता है। यह त्योहार हिंदू धर्म की देवी दुर्गा को समर्पित है, जो शक्ति, साहस और विजय की प्रतीक मानी जाती हैं। दुर्गा पूजा नवरात्रि के अंत में मनाई जाती है, जो नौ दिनों तक चलने वाला पवित्र उत्सव है। इस दौरान मां दुर्गा की पूजा-अर्चना के साथ-साथ सांस्कृतिक कार्यक्रम, नृत्य, संगीत और सामुदायिक एकता का उत्सव भी होता है।
दुर्गा पूजा का महत्व पौराणिक कथाओं से जुड़ा है। मान्यता है कि मां दुर्गा ने नौ दिनों तक राक्षस महिषासुर से युद्ध किया और दसवें दिन उसका वध कर बुराई पर अच्छाई की जीत हासिल की। यह विजय दशमी या विजयादशमी के रूप में मनाई जाती है। यह त्योहार केवल धार्मिक उत्सव ही नहीं, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का प्रतीक भी है। यह लोगों को एकजुट होने, प्रेम और भाईचारे को बढ़ावा देने का अवसर प्रदान करता है।
दुर्गा पूजा की तैयारियां महीनों पहले शुरू हो जाती हैं। पंडालों को भव्य रूप से सजाया जाता है, जिनमें मां दुर्गा की विशाल और आकर्षक मूर्तियां स्थापित की जाती हैं। ये पंडाल कला और रचनात्मकता का अद्भुत नमूना होते हैं, जिनमें हर साल अलग-अलग थीम देखने को मिलती हैं। बंगाल में कोलकाता के पंडाल अपनी अनूठी सजावट और थीम के लिए विश्व प्रसिद्ध हैं। मूर्ति निर्माण में मिट्टी, बांस, कपड़े और अन्य सामग्रियों का उपयोग होता है, जो स्थानीय कारीगरों की कुशलता को दर्शाता है।
इस उत्सव के दौरान, भक्त सुबह-शाम मां दुर्गा की आरती और पूजा करते हैं। भजन, कीर्तन और सांस्कृतिक कार्यक्रम पंडालों में आयोजित होते हैं। नृत्य और नाटक, विशेष रूप से "धुनुची नृत्य" और "सिंदूर खेला", इस उत्सव की विशेषता हैं। "सिंदूर खेला" में विवाहित महिलाएं एक-दूसरे को सिंदूर लगाकर मां दुर्गा से सुख-समृद्धि की कामना करती हैं। इसके अलावा, स्वादिष्ट व्यंजन जैसे भोग, खिचड़ी, पूड़ी और मिठाइयां इस उत्सव का अभिन्न हिस्सा हैं।
दुर्गा पूजा का समापन मूर्ति विसर्जन के साथ होता है। यह एक भावनात्मक क्षण होता है, जब मां दुर्गा की मूर्ति को नदियों या जलाशयों में विसर्जित किया जाता है। यह प्रक्रिया यह संदेश देती है कि हर शुरुआत का अंत होता है, और मां दुर्गा अगले वर्ष फिर से अपने भक्तों के बीच लौटेंगी। विसर्जन के दौरान ढोल-नगाड़ों और नृत्य के साथ लोग उत्साह के साथ विदाई देते हैं।
दुर्गा पूजा न केवल धार्मिक उत्सव है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति की विविधता और एकता का प्रतीक भी है। यह सामुदायिक भागीदारी, कला, संगीत और परंपराओं का संगम है। यह त्योहार हमें यह सिखाता है कि बुराई पर अच्छाई की जीत हमेशा संभव है, और हमें अपने जीवन में साहस, प्रेम और एकता को अपनाना चाहिए।( Akhilesh Kumar is the author.)


