नवरात्रि से विजयादशमी तक: दुर्गा पूजा की महिमा :- भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर में दुर्गा पूजा का विशेष स्थान है।


नवरात्रि से विजयादशमी तक: दुर्गा पूजा की महिमा

 भारत की सांस्कृतिक और आध्यात्मिक धरोहर में दुर्गा पूजा का विशेष स्थान है। यह पर्व नवरात्रि के नौ दिनों से शुरू होकर विजयादशमी के साथ समाप्त होता है, जो शक्ति, भक्ति और विजय का प्रतीक है। नवरात्रि, जिसका अर्थ है 'नौ रातें', माँ दुर्गा के नौ स्वरूपों की उपासना का समय है, जबकि विजयादशमी असत्य पर सत्य की जीत का उत्सव है। यह लेख दुर्गा पूजा की महिमा, इसकी परंपराओं और सांस्कृतिक महत्व को उजागर करता है।

 नवरात्रि: शक्ति की आराधना

 नवरात्रि का पर्व आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से शुरू होता है। इन नौ दिनों में माँ दुर्गा के नौ रूपों—शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कुष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी और सिद्धिदात्री—की पूजा की जाती है। प्रत्येक दिन का अपना विशेष महत्व और पूजा विधान होता है। भक्त उपवास, ध्यान और भक्ति भजनों के माध्यम से माँ की कृपा प्राप्त करने का प्रयास करते हैं। नवरात्रि का हर दिन शक्ति और सकारात्मकता का प्रतीक है, जो भक्तों को जीवन में साहस और दृढ़ता प्रदान करता है।

 दुर्गा पूजा: उत्सव और भक्ति का संगम

 दुर्गा पूजा विशेष रूप से पश्चिम बंगाल, ओडिशा, असम और बिहार जैसे राज्यों में धूमधाम से मनाई जाती है। इस दौरान पंडालों को भव्य रूप से सजाया जाता है, और माँ दुर्गा की मूर्तियाँ स्थापित की जाती हैं। माँ दुर्गा को राक्षस महिषासुर का वध करने वाली शक्ति के रूप में पूजा जाता है, जो बुराई पर अच्छाई की विजय का प्रतीक है। पंडालों में भक्ति भजनों, नृत्य और सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है। ढाक की थाप और धुनाई की आवाज़ उत्सव को और जीवंत बनाती है।

 विजयादशमी: विजय का उत्सव

 नवरात्रि के नौ दिन पूरे होने के बाद दसवें दिन विजयादशमी मनाई जाती है। यह दिन माँ दुर्गा द्वारा महिषासुर के वध और भगवान राम द्वारा रावण पर विजय प्राप्त करने की स्मृति में मनाया जाता है। कई जगहों पर मूर्ति विसर्जन के साथ यह पर्व समाप्त होता है, जिसमें माँ दुर्गा की मूर्तियों को नदियों या जलाशयों में विसर्जित किया जाता है। यह दृश्य भावनात्मक और आध्यात्मिक दोनों होता है, क्योंकि भक्त माँ को विदाई देते हैं, यह विश्वास रखते हुए कि वह अगले वर्ष फिर लौटेंगी।

 सांस्कृतिक और सामाजिक महत्व

 दुर्गा पूजा केवल धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि सामाजिक एकता और सांस्कृतिक समृद्धि का प्रतीक भी है। यह पर्व विभिन्न समुदायों को एक साथ लाता है। पंडालों में लोग एकत्र होते हैं, नृत्य-गीत का आनंद लेते हैं और सामूहिक भोज में भाग लेते हैं। यह उत्सव कला, संगीत और हस्तशिल्प को भी प्रोत्साहित करता है। साथ ही, यह नारी शक्ति का सम्मान करने का अवसर प्रदान करता है, क्योंकि माँ दुर्गा नारी के सशक्त रूप का प्रतीक हैं।

 निष्कर्ष

 नवरात्रि से विजयादशमी तक का यह उत्सव भारतीय संस्कृति की गहरी जड़ों को दर्शाता है। यह भक्ति, शक्ति और विजय का अनुपम संगम है। माँ दुर्गा की कृपा से भक्तों को जीवन में साहस और आशा प्राप्त होती है। यह पर्व हमें सिखाता है कि चाहे कितनी भी कठिनाइयाँ आएँ, सत्य और धर्म की जीत निश्चित है।( Akhilesh Kumar is the author.)

 

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