श्रीकृष्ण जन्माष्टमी: प्रेम, भक्ति और आनंद का उत्सव
श्रीकृष्ण जन्माष्टमी, हिंदू धर्म का एक प्रमुख पर्व, भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव है, जो विश्व भर में लाखों भक्तों द्वारा बड़े उत्साह और भक्ति के साथ मनाया जाता है। यह पर्व भाद्रपद मास की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता है, जो इस वर्ष 2025 में विशेष रूप से महत्वपूर्ण है। श्रीकृष्ण, जिन्हें भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है, का जन्म मथुरा में देवकी और वासुदेव के पुत्र के रूप में हुआ था। यह पर्व न केवल उनके जन्म की स्मृति है, बल्कि उनके जीवन, लीलाओं और शिक्षाओं का उत्सव भी है, जो आज भी मानवता को प्रेरित करती हैं।
जन्माष्टमी का पर्व प्रेम, भक्ति और आनंद का संगम है। इस दिन भक्त उपवास रखते हैं, मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना करते हैं और भगवान श्रीकृष्ण की लीलाओं को भजनों, कीर्तनों और नाटकों के माध्यम से जीवंत करते हैं। मथुरा, वृंदावन, द्वारका और अन्य कृष्ण-तीर्थ स्थलों पर इस अवसर पर भव्य उत्सव आयोजित किए जाते हैं। मंदिरों को फूलों, दीयों और रंगोली से सजाया जाता है, और भक्त रात 12 बजे तक प्रतीक्षा करते हैं, क्योंकि माना जाता है कि श्रीकृष्ण का जन्म मध्यरात्रि में हुआ था। इस समय मंदिरों में शंखनाद, घंटियों की ध्वनि और भक्ति भजनों का माहौल भक्तों को आध्यात्मिक आनंद प्रदान करता है।
जन्माष्टमी का एक अनूठा आकर्षण है "दही हांडी" उत्सव, विशेष रूप से महाराष्ट्र और गुजरात में। यह आयोजन श्रीकृष्ण के माखन चोर रूप को समर्पित है, जहां युवा "गोविंदा" समूह बनाकर मानव पिरामिड बनाते हैं और ऊंचाई पर लटकी दही की हांडी को तोड़ने का प्रयास करते हैं। यह न केवल मनोरंजन का साधन है, बल्कि एकता, साहस और समन्वय का प्रतीक भी है। यह उत्सव श्रीकृष्ण की बाल लीलाओं को जीवंत करता है, जब वे माखन चुराने के लिए अपनी शरारतों से मथुरा की गलियों को गुलजार करते थे।
श्रीकृष्ण की शिक्षाएं, विशेष रूप से भगवद्गीता में दी गई उनकी शिक्षाएं, जन्माष्टमी के पर्व को और भी गहन बनाती हैं। गीता में कर्मयोग, भक्तियोग और ज्ञानयोग के माध्यम से श्रीकृष्ण ने जीवन के हर पहलू को संतुलित करने का मार्ग दिखाया। जन्माष्टमी का अवसर भक्तों को उनके इस दर्शन को आत्मसात करने और जीवन में प्रेम, करुणा और निस्वार्थ कर्म को अपनाने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें सिखाता है कि जीवन में सच्चा आनंद भक्ति और प्रेम में ही निहित है।
जन्माष्टमी का पर्व सामाजिक एकता को भी बढ़ावा देता है। इस दिन लोग एक साथ मिलकर भजन-कीर्तन करते हैं, प्रसाद बांटते हैं और सामुदायिक आयोजनों में भाग लेते हैं। यह उत्सव न केवल धार्मिक है, बल्कि सांस्कृतिक और सामाजिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह हमें श्रीकृष्ण के प्रेम और भक्ति के संदेश को अपने जीवन में उतारने और दूसरों के साथ साझा करने की प्रेरणा देता है।
अंत में, श्रीकृष्ण जन्माष्टमी केवल एक धार्मिक पर्व नहीं, बल्कि प्रेम, भक्ति और आनंद का उत्सव है, जो हमें जीवन के सच्चे अर्थ को समझने और उसे जीने की प्रेरणा देता है। यह पर्व हमें श्रीकृष्ण की लीलाओं और शिक्षाओं के माध्यम से एक बेहतर इंसान बनने का अवसर प्रदान करता है।( Akhilesh Kumar is the author.)