धनतेरस से दीवाली तक: उत्सवों की शुरुआत भारत में त्योहारों का मौसम धनतेरस से शुरू होकर दीवाली तक अपने चरम पर पहुँचता है।

धनतेरस से दीवाली तक: उत्सवों की शुरुआत

 भारत में त्योहारों का मौसम धनतेरस से शुरू होकर दीवाली तक अपने चरम पर पहुँचता है।  यह समय न केवल उत्सव और उमंग का होता है, बल्कि यह भारतीय संस्कृति, परंपराओं और आध्यात्मिकता का प्रतीक भी है।  धनतेरस, जो दीवाली से दो दिन पहले मनाया जाता है, समृद्धि, स्वास्थ्य और नई शुरुआत का पर्व है।  यह पाँच दिवसीय दीवाली उत्सव की शुरुआत करता है, जिसमें धनतेरस, नरक चतुर्दशी, दीवाली, गोवर्धन पूजा और भाई दूज शामिल हैं।

 धनतेरस: समृद्धि का प्रथम सोपान

 धनतेरस, जिसे धनत्रयोदशी भी कहा जाता है, कार्तिक मास की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है।  इस दिन भगवान धन्वंतरि, माता लक्ष्मी और कुबेर की पूजा की जाती है।  मान्यता है कि समुद्र मंथन के दौरान भगवान धन्वंतरि अमृत कलश लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना की जाती है।  लोग इस अवसर पर सोना, चाँदी, बर्तन और अन्य कीमती वस्तुएँ खरीदते हैं, क्योंकि यह शुभ माना जाता है।  धनतेरस की शाम को यमराज के लिए दीपदान की परंपरा भी निभाई जाती है, जिसे यम दीपम कहा जाता है, ताकि अकाल मृत्यु से रक्षा हो।

 नरक चतुर्दशी: अंधेरे पर प्रकाश की जीत

 धनतेरस के अगले दिन नरक चतुर्दशी, जिसे छोटी दीवाली या काली चौदस भी कहते हैं, मनाई जाती है।  इस दिन भगवान कृष्ण द्वारा नरकासुर के वध की कथा जुड़ी है।  लोग सुबह जल्दी उठकर स्नान करते हैं और घर को दीपों से सजाते हैं।  यह दिन बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है और दीवाली की तैयारी को और गति देता है।

 दीवाली: प्रकाश का महापर्व

 दीवाली, त्योहारों का केंद्रबिंदु, अमावस्या के दिन मनाई जाती है।  यह दिन माता लक्ष्मी और भगवान गणेश की पूजा के लिए समर्पित है।  घरों को दीपों, रंगोली और फूलों से सजाया जाता है।  लोग मिठाइयाँ बाँटते हैं, आतिशबाजी करते हैं और एक-दूसरे के साथ खुशियाँ साझा करते हैं।  दीवाली न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक एकता का भी प्रतीक है।  यह बुराई पर अच्छाई और अज्ञान पर ज्ञान की विजय का उत्सव है, जो भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी में मनाया जाता है।

 गोवर्धन पूजा और भाई दूज: प्रेम और आभार

 दीवाली के बाद गोवर्धन पूजा होती है, जिसमें भगवान कृष्ण और प्रकृति के प्रति आभार व्यक्त किया जाता है।  अंत में भाई दूज के साथ यह उत्सव समाप्त होता है, जो भाई-बहन के पवित्र रिश्ते को समर्पित है।

 निष्कर्ष

 धनतेरस से दीवाली तक का यह उत्सव केवल धार्मिक अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है, बल्कि यह परिवार, समुदाय और संस्कृति को जोड़ने का अवसर भी है।  यह समय नई शुरुआत, सकारात्मकता और एकता का प्रतीक है।  इस उत्सव के दौरान, हम न केवल अपने घरों को सजाते हैं, बल्कि अपने मन को भी प्रेम और सद्भाव से रोशन करते हैं।

 (Akhilesh Kumar is the author)


 

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