करवा चौथ की रात: चाँद और प्यार का मिलन
करवा चौथ भारतीय संस्कृति में एक ऐसा पर्व है जो प्रेम, विश्वास और समर्पण का प्रतीक माना जाता है। यह त्योहार विशेष रूप से विवाहित महिलाओं द्वारा अपने पति की लंबी आयु और सुखमय जीवन की कामना के लिए मनाया जाता है। करवा चौथ की रात चाँद और प्यार के मिलन का एक अनूठा संगम है, जहाँ चाँद की चांदनी और पति-पत्नी के अटूट प्रेम का एक सुंदर समन्वय देखने को मिलता है। यह पर्व हर साल कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को मनाया जाता है, और इस दिन सुहागिनें निर्जला व्रत रखकर अपने पति के प्रति अपनी श्रद्धा और प्रेम को व्यक्त करती हैं।
करवा चौथ का व्रत सुबह सूर्योदय से शुरू होता है, जब महिलाएँ सर्गी के रूप में अपनी सास से प्राप्त भोजन ग्रहण करती हैं। इसके बाद, दिनभर पानी और भोजन के बिना व्रत रखा जाता है। इस दौरान महिलाएँ सोलह श्रृंगार करती हैं, जिसमें मेहंदी, बिंदिया, चूड़ियाँ, और सुंदर परिधान शामिल हैं। यह न केवल उनकी सुंदरता को निखारता है, बल्कि उनके उत्साह और उत्सव की भावना को भी दर्शाता है। करवा चौथ की कथा सुनना इस व्रत का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है, जिसमें वीरवती और करवा माता की कहानियाँ शामिल हैं, जो विश्वास और समर्पण की मिसाल पेश करती हैं।
जैसे-जैसे दिन ढलता है, रात का इंतज़ार बढ़ता जाता है। करवा चौथ की रात का सबसे खास पल होता है चाँद का दीदार। महिलाएँ चाँद के निकलने का बेसब्री से इंतज़ार करती हैं। जब चाँद आकाश में प्रकट होता है, तो उसकी चांदनी न केवल रात को रोशन करती है, बल्कि पति-पत्नी के प्रेम को भी और गहरा करती है। महिलाएँ छलनी के माध्यम से पहले चाँद को देखती हैं और फिर अपने पति को, जिसे एक प्रतीकात्मक अनुष्ठान माना जाता है। इसके बाद पति अपनी पत्नी को पानी और भोजन देकर व्रत खोलते हैं, जो उनके आपसी प्रेम और विश्वास को और मजबूत करता है।
यह पर्व केवल व्रत और अनुष्ठानों तक सीमित नहीं है; यह एक अवसर है जो पति-पत्नी के रिश्ते को और गहरा करता है। आज के आधुनिक दौर में भी करवा चौथ का महत्व कम नहीं हुआ है। कई महिलाएँ और पुरुष इस दिन को एक-दूसरे के प्रति अपनी भावनाओं को व्यक्त करने के लिए एक विशेष अवसर के रूप में देखते हैं। कुछ जोड़े इस दिन को एक साथ समय बिताने, उपहारों का आदान-प्रदान करने और अपने रिश्ते को और मजबूत करने के लिए उपयोग करते हैं।
करवा चौथ की रात चाँद और प्यार का मिलन इसलिए खास है क्योंकि यह सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान नहीं, बल्कि एक भावनात्मक बंधन का उत्सव है। यह पर्व हमें सिखाता है कि प्रेम और विश्वास के साथ हर रिश्ता और मजबूत हो सकता है। चाँद की चांदनी में नहाया यह त्योहार हर साल पति-पत्नी के प्रेम को एक नई रोशनी देता है, जो सात जन्मों तक बरकरार रहने की कामना करता है।( Akhilesh Kumar is the author.)