शिर्षक: बंधन
गाँव की शांत गलियों में सुबह की हल्की-हल्की रोशनी फैल चुकी थी। मानसी अपने घर के आंगन में बैठी हुई थी। उसकी आँखों में एक अजीब सी उदासी थी। उसे अपने जीवन का बंधन अब भारी लगने लगा था। घर-गृहस्थी की जिम्मेदारियों में उसने खुद को खो दिया था। परन्तु आज उसकी आँखों में एक अलग चमक थी, जैसे वह किसी नए फैसले की ओर बढ़ने वाली हो।
वह बचपन से ही अपने सपनों के पीछे भागना चाहती थी, पर समाज और परिवार के बंधनों ने उसे रोक रखा था। शादी के बाद, पति और बच्चों की देखभाल में उसने अपने सपनों को दबा दिया था। पर अब वह महसूस कर रही थी कि जीवन सिर्फ दूसरों के लिए नहीं, खुद के लिए भी जीना चाहिए।
मानसी का पति, राकेश, एक सीधा-सादा इंसान था। वह अपने परिवार के प्रति बहुत जिम्मेदार था, लेकिन मानसी के मन के भावों को कभी समझ नहीं पाया। हर रोज़ की तरह, वह काम पर चला गया और मानसी ने घर के कामों में खुद को व्यस्त कर लिया। पर आज उसके दिल में कुछ बदलने की चाहत थी।
उसे याद आया, जब वह छोटी थी, कैसे वह स्कूल में नाटक खेला करती थी। उसे अभिनय का शौक था, पर शादी के बाद वह सब छूट गया। आज अचानक उसने ठान लिया कि वह फिर से अभिनय करेगी। उसने फैसला किया कि वह अपने पुराने सपने को ज़िंदा करेगी।
शाम को, जब राकेश घर आया, तो मानसी ने उससे बात की। "राकेश, मैं तुमसे कुछ कहना चाहती हूँ," उसने धीमे से कहा।
राकेश ने थोड़ी हैरानी से उसे देखा, "क्या हुआ? सब ठीक तो है?"
"हाँ, सब ठीक है, पर मैं अब अपने सपनों को जीना चाहती हूँ। मैंने अपने जीवन के कई साल इस घर और परिवार के लिए दिए हैं, लेकिन अब मैं अपने लिए कुछ करना चाहती हूँ। मुझे अभिनय में फिर से जाने का मन है," मानसी ने अपने दिल की बात कह दी।
राकेश चौंक गया। उसने मानसी को कभी इस तरह से नहीं देखा था। पहले तो उसे समझ नहीं आया कि क्या कहे, पर फिर उसने सोचा, "अगर मानसी को इससे खुशी मिलती है, तो क्यों नहीं?"
"ठीक है, अगर तुम्हें लगता है कि इससे तुम्हें खुशी मिलेगी, तो मैं तुम्हारे साथ हूँ," राकेश ने कहा।
मानसी की आँखों में खुशी के आँसू आ गए। उसने सोचा नहीं था कि राकेश उसकी बात को इतनी आसानी से मान लेगा। अब उसे लगा कि जीवन का बंधन उतना भी भारी नहीं था, जितना वह सोच रही थी। कभी-कभी हमें अपने सपनों के पीछे भागने के लिए बस एक कदम उठाने की जरूरत होती है, और बाकी रास्ता खुद-ब-खुद बन जाता है।